सहारनपुर: यूपी का जिला सहारनपुर पिछले 20 दिनों से जातीय हिंसा का शिकार बना हुआ है. अबतक तीन लोगों की मौत हो चुकी है, दर्जनों घायल हैं और करीब 71 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
पुलिस और अर्धसैनिक बलों की कई टुकड़ियां इलाके में गश्त लगा रही हैं. पूरा इलाके में दहशत फैली हुई है लेकिन ऐसे ही मौके राजनीतिक पार्टियों के लिए दीवाली जैसे होती है क्योंकि इस समय लोगों को भड़काना या अपनी तरफ मोड़ना बहुत आसान होता है. यही इस समय देखने को मिल रहा है. पहले मायावती और शनिवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सहारनपुर पहुंचने वाले हैं. जाहिर है एक दूसरे पर आरोपों-प्रत्यारोपों की राजनीति होगी. अपना दामन दूसरों से साफ दिखाने के दावे किए जाएंगे.
भारतीय राजनीति में ये बिलकुल भी नया नहीं है. चुनाव के दौरान लोगों को जाति- धर्म के नाम पर भड़काने का चलन बहुत पुराना है, लेकिन विडंबना ये है कि ये चलन खत्म होनी की जगह बढ़ता जा रहा है. पहले ज्यादातर विधानसभा चुनावों के दौरान इस तरह के पैंतरे आजमाए जाते थे और वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जाती थी लेकिन अब तो निकाय चुनाव के लिए भी जातिगत राजनीति हो रही है.
सहारनपुर में इस साल निकाय चुनाव हैं, ऐसा पहली बार है जब सहारनपुर में निकाय चुनाव होने हैं. सहारनपुर में सीटों के समीकरण को ऐसे समझिए कि सहारनपुर लोकसभा सीट तो बीजेपी के पास है लेकिन विधानसभा की 5 में से तीन सीटें बीजेपी के हाथ से निकल गई है. अब बीएसपी की बात करें तो ये बसपा का गढ़ माना जाता है लेकिन यूपी चुनाव में पार्टी यहां खाता भी नहीं खोल पाई.
अब बीजेपी का कहना है कि ये लड़ाई बीएसपी और भीम सेना के बीच है और दोनों वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. जबकि भीम सेना का कहना है कि जहां भी दलितों पर अत्याचार होगा वहां वो एक साथ खड़ें होंगे. बीएसपी का कहना है कि सूबे में बीजेपी की सरकार है और उन्हीं की शह पर ठाकुर और दूसरे ऊंची जाति के लोग दलितों के ऊपर अत्याचार कर रहे हैं. जितने मुंह उतनी बातें लेकिन इतना तय है कि अंत में भुगतना उस आम आदमी को ही पड़ेगा जो दो जून की रोटी के लिए हर रोज संघर्ष करता है