अला हजरत दरगाह के मौलवियों ने एक नया फतवा जारी किया है. मौलवियों ने आतंकवाद से जुड़े किसी भी शख्स और उसके हिमायतियों को दफन करने से पहले पढ़ी जाने वाली आखिरी नमाज पढ़ने पर रोक लगा दी है. ईद के मौके पर एक कड़ा संदेश देते हुए बरेली के प्रभावशाली मदरसे के मौलवियों ने कहा कि अगर कोई आतंकवादी के जुड़े अपने संबंधों की वजह से मारा जाता है तो उसे दफन करते समय 'नमाज-ए-जनाजा' नहीं पढ़ा जाएगा.
बरेली. अला हजरत दरगाह के मौलवियों ने एक नया फतवा जारी किया है. मौलवियों ने आतंकवाद से जुड़े किसी भी शख्स और उसके हिमायतियों को दफन करने से पहले पढ़ी जाने वाली आखिरी नमाज पढ़ने पर रोक लगा दी है. ईद के मौके पर एक कड़ा संदेश देते हुए बरेली के प्रभावशाली मदरसे के मौलवियों ने कहा कि अगर कोई आतंकवादी के जुड़े अपने संबंधों की वजह से मारा जाता है तो उसे दफन करते समय ‘नमाज-ए-जनाजा’ नहीं पढ़ा जाएगा.
मस्जिद में ईद की इबादत के बाद दरगाह के मौलवियों ने अपने समर्थकों से आतंकवाद से जुड़े लोगों का बहिष्कार करने की अपील की. दरगाह अला हजरत की एक शाखा तहरीक-ए-तहफ्फुज सुन्नियत के जनरल सेक्रटरी मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी ने कहा, ‘ईद के इस मौके पर सुन्नी बरेलवी मरकज ने एक कड़ा संदेश भेजा है कि कोई भी मौलाना, मुफ्ती या कोई अन्य धार्मिक नेता आतंकवाद से जुड़े किसी भी शख्स को दफन करने से पहले ‘नमाज-ए-जनाजा’ नहीं पढ़ेगा.’
उन्होंने कहा, ‘हम आतंकवाद के खिलाफ अपना कड़ा विरोध दर्ज कराना चाहते हैं.’ गौरतलब है कि ‘नमाज-ए-जनाजा’ एक विशेष प्रार्थना होती है जो किसी की मौत पर मौलवियों द्वारा पढ़ी जाती है. यह किसी को दफन करने से पहले पढ़ी जाती है. तहरीक-ए-तहफ्फुज सुन्नियत को प्रगतिशील फतवे जारी करने के लिए जाना जाता है. यह संस्था पहले भी ऐसे फतवे जारी करती रही है.