नई दिल्ली: यूपी में योगी सरकार की ओर से अल्पसंख्यक शब्द निकले और उस पर राजनीतिक बवाल ना मचे, ऐसा कैसे हो सकता है. आज सुबह से इस खबर ने बवाल मचा रखा है कि यूपी सरकार ने समाज कल्याण की 85 योजनाओं से अल्पसंख्यकों का कोटा खत्म करने का मन बना लिया है.
योगी सरकार के मंत्री तो बयान भी देने लगे कि कोटा खत्म करके नई योजना लाई जाएगी, लेकिन शाम होते-होते यूपी के समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री सफाई देने लगे कि अल्पसंख्यक कोटा खत्म करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है.
साल 2012 में यूपी के चुनाव से पहले अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी ने मुसलमानों को उनकी हिस्सेदारी के हिसाब से आरक्षण देने का वादा किया था. बाद में उन्हें समझ में आया कि संविधान के तहत धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है, तो उन्होंने अल्पसंख्यकों से किया वादा निभाने के लिए नया रास्ता निकाला.
अखिलेश यादव सरकार ने गरीबी का हवाला देकर 85 सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों का 20 फीसदी कोटा तय कर दिया, जिस पर अब शंका और सवाल उठ गए हैं. यूपी में माइनॉरिटी कोटा पर घमासान इस खबर के साथ शुरू हुआ कि योगी सरकार ने सरकारी योजनाओं से अल्पसंख्यकों का कोटा खत्म करने का मन बना लिया है.
कहा गया कि योगी सरकार में समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने अल्पसंख्यक कोटा खत्म करने की रज़ामंदी दे दी है और अब ये प्रस्ताव योगी कैबिनेट के सामने लाया जाएगा. इस पर राजनीति गरमाई तो रमापति शास्त्री ने बयान जारी कर सफाई दी कि अल्पसंख्यकों का 20 फीसदी कोटा खत्म करने की खबरें बेबुनियाद हैं, ऐसा कोई प्रस्ताव सरकार के सामने विचाराधीन नहीं है.
हालांकि यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से जब पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि हम अध्ययन कर रहे हैं, जो अनावश्यक होगा उसे हटाया जाएगा. अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री मोहसिन रज़ा ने तो दो कदम आगे बढ़कर कहा कि माइनॉरिटी कोटा की शिकायतें आ रही हैं, इसलिए अल्पसंख्यकों के फायदे के लिए नई योजना लाई जाएगी.
फिर अल्पसंख्यक कोटा खत्म करने के विवाद और बयानों का सच क्या है ? क्या अल्पसंख्यक कोटा सबका साथ सबका विकास की राह में रोड़ा है, आज इसी मुद्दे पर होगी बड़ी बहस.
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