नई दिल्ली: तीन तलाक के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से बेहद महत्वपूर्ण सवाल पूछा है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्या निकाह के वक्त ही महिलाओं को ये अधिकार दिया जा सकता है कि वो एक साथ तीन तलाक को कबूल ना करें.
आखिर निकाह के कॉन्ट्रैक्ट लेटर यानी निकाहनामे में ही तीन तलाक की शर्त क्यों नहीं लिखी जाती? तीन तलाक आस्था का मसला है या महिलाओं पर जुल्म, आज इन्हीं सवालों पर होगी बड़ी बहस है.
तीन तलाक पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से पूछा कि क्या ‘निकाहनामा’ में महिला को तीन तलाक के लिए ‘ना’ कहने का विकल्प दिया जा सकता है ? बता दें कि तीन तलाक के मामले में मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के वकील वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और सांसद कपिल सिब्बल तीन तलाक के मामले में अपना तर्क रखा. सिब्बल ने कहा कि जैसे रामायण हिन्दुओं के लिए आस्था का मुद्दा है, वैसे ही तीन तलाक मुस्लिमों के लिए आस्था का मुद्दा है, उन्होंने कहा कि ये प्रथा पिछले 1500 साल से प्रचलित है, तो ये असंवैधानिक कैसे हुई ?