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कुलभूषण जाधव मामले में सुनवाई पूरी, फैसले को लेकर ये बोला अंतरराष्ट्रीय कोर्ट

पाकिस्तान की जेल में बंद कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा पर रोक लगाने की अपील पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है. भारत और पाकिस्तान का पक्ष सुनने के बाद ICJ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

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  • May 15, 2017 6:03 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
हेग: पाकिस्तान की जेल में बंद कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा पर रोक लगाने की अपील पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है. भारत और पाकिस्तान का पक्ष सुनने के बाद ICJ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट ने कहा है कि वो जल्द से जल्द इस मामले में अपना फैसला सुना देगा और फैसले की जो भी तारीख तय की जाएगी उसकी जानकारी दोनों पक्षों को दे दी जाएगी.
 
 
भारतीय समय अनुसार 1 बजकर 30 मिनट से भारत ने अपना पक्ष रखना शुरू किया था और उसे 90 मिनट का समय मिला था. शाम को पाकिस्तान ने अपना पक्ष रखा और उसे भी 90 मिनट का समय दिया गया. इस मामले में भारत ने विएना समझौते का हवाला देते हुए जाधव की फांसी पर रोक लगाने की मांग की है.
 
 
पाकिस्तान ने इंटरनेशनल कोर्ट में कुलभूषण जाधव के कबूलनामे का वीडियो दिखाने की अपील की थी. लेकिन कोर्ट ने कहा-वीडियो सबके पास है और कोई भी उसे देख सकता है.
 
 
भारत-पाकिस्तान की दलील
अंतर्राष्ट्रीय अदालत में भारत ने कहा कि जाधव को बिना बताए ट्रायल शुरू कर दिया गया था. जवाब में पाकिस्तान ने दावा किया उसने भारत को शामिल होने के लिए चिट्ठी भेजी थी. भारत ने कहा कि डर है कि कुलभूषण मामले में सुनवाई पूरी होने से पहले ही कहीं उसे फांसी न दे दिया जाए. 
 
वहीं, पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि भारत ने इंटरनेशनल कोर्ट का इस्तेमाल सियासी ड्रामे के तहत किया. भारत ने दलील दी कि पाकिस्तान ने कुलभूषण को कॉन्सुलर एक्सेस नहीं दिया और उसकी कोई वजह भी नहीं बताई. जबकि पाकिस्तान बार-बार कुलभूषण के कथित कबूलनामे वाले वीडियो दिखाने की बात करता रहा जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.
 
 
अंदर की बात 
अंदर की बात ये है कि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भारत की दलीलें बेहद मजबूत हैं. भारत को मालूम था कि पाकिस्तान की ओर से इंटरनेशनल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का मुद्दा उठाया जाएगा, इसलिए हरीश साल्वे ने पहले ही इंटरनेशनल कोर्ट में दलील रख दी कि जाधव का कांसुलर एक्सेस ना देना अपने आप में पर्याप्त आधार है और इंटरनेशनल कोर्ट इस मामले में दखल दे सकता है. उन्होंने याद दिलाया कि 1999 में दो जर्मन नागरिकों की सज़ा और 2003 में मेक्सिकों के 54 नागरिकों की फांसी के मामले में इंटरनेशनल कोर्ट ने अमेरिका के खिलाफ फैसला सुनाया था.

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