नई दिल्ली : कोर्ट की अवमानना के दोषी ठहराए गए कलकत्ता हाईकोर्ट के जज सीएस करनन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने आदेश जारी किया था और वही याचिका पर सुनवाई करेंगे.
जस्टिस करनन ने नौ मई को सात सदस्यीय पीठ की ओर से दिए गए फैसले पर रोक लगाने और आदेश को वापस लेने की गुहार की थी. बता दें कि पीठ ने जस्टिस करनन को अवमानना का दोषी ठहराते हुए छह महीने कैद की सजा सुनाई है.
जस्टिस करनन ने न्यायालय की अवमानना अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई नहीं चलाई जा सकती. संविधान के तहत हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं है बल्कि सुप्रीम कोर्ट की तरह हाईकोर्ट भी अपने आप में स्वतंत्र है. यह अलग बात है कि हाईकोर्ट के न्यायिक फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.
जस्टिस करनन का कहना कि आठ फरवरी को उनके खिलाफ जारी नोटिस से लेकर नौ मई तक के तमाम आदेश असंवैधानिक और शून्य है. साथ ही उन्होंने कहा बिना उनकी उपस्थिति में नौ मई का आदेश पारित किया गया, ऐसे में कानून की नजरों में उसकी कोई अहमियत नहीं है. यह ‘प्रिसंपल ऑफ नेचुरल जस्टिस’ के खिलाफ है.
गुरुवार को तीन तलाक पर सुनवाई कर रही पीठ के समक्ष एक वकील ने जस्टिस करनन की याचिका का उल्लेख किया. इस पर चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने वकील से पूछा कि जस्टिस करनन कहां हैं? जवाब में वकील ने बताया कि बुधवार को चेन्नई में उन्हें जस्टिस करनन की ओर से हस्ताक्षरित अदालती दस्तावेज मिले हैं.
चीफ जस्टिस ने कहा कि यह वह पीठ नहीं है जिसने नौ मई को आदेश पारित किया था. इससे पहले चीफ जस्टिस ने वकील से पूछा कि आखिर वह किस हैसियत से आए हैं. वकील ने जवाब दिया कि जस्टिस करनन ने पावर ऑफ अटॉर्नी दी है. इस पर पीठ ने सवाल किया अगर जस्टिस करनन की खोज खबर नहीं है तो उन्होंने याचिका पर हस्ताक्षर कैसे किये. हालांकि चीफ जस्टिस ने कहा कि हम याचिका पर विचार करेंगे.
वकील ने यह भी बताया कि जस्टिस करनन की याचिका पर कई एडवोकेट ऑन रिकार्ड ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, जिससे जस्टिस करनन को याचिका दायर करने में परेशानी हुई.