मुंबई: सरकार3 उसी पैटर्न पर है.. जैसी बाकी दो फ़िल्में थीं… दोनों नहीं देखीं तो कोई ज़रूरत नहीं… सरकार सोच नहीं एक कॉमिक्स सीरीज है….और रामू को जो सही लगता है उसी को रिपीट करते रहते हैं नए करेक्टर्स के साथ… बाकी है तो गोविंदा..गोविंदा, इस बार थोड़े पॉप स्टाइल में…!
अगर आप सीधे सीधे जानना चाहेंगे कि कैसी है फिल्म तो जान लीजिए सरकार राज से बेहतर नहीं है, लेकिन रामगोपाल वर्मा की आग से काफी बेहतर है क्योंकि फिल्म के आखिरी सीन तक आपको बांधे तो रखती है ये मूवी.
सीरीज की फिल्मों में चूंकि मुख्य किरदार तो बदलते नहीं लेकिन कहानी में नए विलेन्स, नई हीरोइन और नए और रोमांचक घटनाक्रम रचे जा सकते हैं. सरकार 3 के साथ दिक्कत ये है कि विलेन रचे तो गए काफी कद्दावर जैकी श्रॉफ और मनोज बाजपेयी जैसे, लेकिन उनकी चालें इतनी तेज या खौफनाक नहीं थी, जैसा कि उनके करेक्ट्रर्स पोट्रेट किए गए थे. फिर ऐश्वर्या के कद और किरदार के मुकाबले याम्मी का कद और किरदार दोनों छोटे थे, तो अभिषेक के मुकाबले अमित साद किरदार बड़ा करने के वाबजूद लोगों को हजम नहीं होते, यहां रणवीर कपूर या रणवीर सिंह ज्यादा असरदार होते.
पहली सरकार में केके के एक बेटे का कत्ल किया गया, दूसरी में दूसरे का, तीसरी भी शायद तभी असरदार होती, जब किसी तीसरे का होता, उसके लिए ऐश्वर्य़ा रॉय सबसे मुफीद चेहरा था क्योंकि सरकार राज उन्हीं के साथ खत्म हुई थी. इस मूवी में उनका जिक्र भी नहीं था.
कहानी इस मूवी में बिलकुल उन्ही लाइनों पर है यानी मुंबई में किसी को प्रोजेक्ट लाना है, सरकार को पसंद नहीं, ना मदद करते हैं और ना प्रोजेक्ट शुरू करने देते हैं. तब वो बिजनेसमेन नेता और माफिया की मदद से सरकार को खत्म करना चाहता है. सरकार थ्री में कहानी अमिताभ के पोते चीकू उर्फ शिवाजी नागरे (अमित साद) के सरकार की टीम ज्वॉइन करने से होती है, जो उनके खासमखास सिपहासालार रोनित रॉय के लिए मुश्किलें खड़ी कर देता है.
जैकी श्रॉफ हैं एक ऐसे दुबई के बिजनेसमेन के रूप में जो मुंबई में धारावी की पब्लिक को हटाकर कोई रेजीडेंशियल प्रोजेक्ट लाना चाहता था, उसको दो मोहरे हैं एक गांधी, जो एक पॉलटिकल ब्रोकर है और दूसरा गोविंद देशपांडे यानी मनोज वाजपेयी, एक लोकल नेता जो सरकार से घृणा करता है. सारे मिलकर पहले गोकुल यानी रोनित रॉय़ और फिर शिवाजी (अमित साद) को तोड़ने की कोशिश करते हैं, और कैसे सरकार आखिर में सब योजनाओं को फेल कर सरकार साबित होते हैं, इसी की कहानी है सरकार3.
प्रोमो में सरकार को एंग्रीयर एवर बताया गया था, लेकिन उनका डायलॉग राइटर जान से मार दूंगा या फिर मुझे नाटक करना पड़ा जैसे हलके शब्द सरकार के मुंह से बुलवाकर सरकार की इमेज हलकी कर देता है. महाराष्ट्र में किसी बाहर के फिल्ममेकर की हिम्मत नहीं है कि शिवाजी नाम से किसी मूवी में कोई विलेन भी बना दे, ये बात अगर आपकी समझ में जल्दी घुस जाती है, तो फिर फिल्म का क्लाइमेक्स आप पहले ही भांप जाते हैं, फिर ये मूवी आप आसानी से गैस कर सकते हैं.
वैसे भी किसी बात को साबित करने के लिए लॉजिक होने चाहिए, जो इस मूवी में नहीं है. जैसे गोकुल ने सरकार को शिवाजी के खिलाफ जाने के लिए इतनी आसानी से कैसे कनविंस कर लिया वो भी बिना सुबूत? सरकार के घर में गद्दार थे तो आसानी से खेल खत्म क्यो नहीं किया, उसके लिए सी बीच पर विसर्जन में द्रोण कैमरे से बम फेंकने की जरूरत क्या थी? जैकी को जब पता था कि शिवाजी सरकार के घर जा रहा है, तो वहां क्यों पहुंचा? इतने बड़े बड़े विलेन थे मूवी में, फिर भी एक स्टेप वो ढंग से नहीं उठा पाए, सरकार से जुड़े एक भी किरदार को नहीं उड़ा पाए?
ये तो लॉजिक थे सरकार राज की तुलना में सरकार3 कम पसंद आने की वजह। लेकिन बाकी मूवी में वो सब था जो एक सरकार सीरीज की मूवी में होता है, यानी रीढ़ सिहरा देने वाला बैकग्राउंड म्यूजिक, कुछ अच्छे डायलॉग, अमिताभ-रोनित-जैकी और मनोज बाजपेयी की बेहतरीन एक्टिंग.
तीनों महिलाओं यामी, रोहिणी और सुप्रिया पाठक के लिए करने को कुछ नहीं था, यामी बस ठहरी आंखों के साथ सीरियस लुक देती रही हैं. जैकी का रोल और मोना डार्लिग की तरह एक हसीना से उसकी चुहलबाजी अच्छी बन प़ड़ी है, किरदार कायदे से खड़ा तो होता है लेकिन सरकार राज के दिलीप प्रभावलकर के रोल के आगे फीका लगता है. फिर भी सरकार लागत के पैसे निकाल लेगी. क्योंकि सरकार सीरीज के चाहने वाले अगर क्लाइमेक्स गैस नहीं कर पाए तो उनको वाकई में मजा आएगा…. बाकी गोविंदा गोविंदा गोविंदा यानी 3 स्टार.