नई दिल्ली: सआदत हसन मंटो, भारतीय साहित्य का एक ऐसा नाम जिसे लोग लेखक कम और क्रांतिकारी ज्यादा मानते हैं. वो अन्य लेखकों की तरह सिर्फ लेखक की उपाधि से इसलिए भी नहीं नमाजे गये क्योंकि वो अपनी लेखनी से समाज को आईना दिखाते थे. वो इस बात की भी परवाह नहीं करते थे कि उनकी सच्चाई को हमारा समाज पचा पाएगा या नहीं. यही वजह है कि उनके ऊपर अश्लील और भद्दा लेखक होने के तोहमत लगते रहें.
समाज की सच्चाई को कागज पर उतारने वाला लेखक :
वो इस बात से महरूम समाज की उन तमाम सच्चाईयों और पहलूओँ को अपनी लेखनी से कागज पर उतारते रहें, जो समाज की नजर में गलत और अशल्लीलता की सीमा में आते थे. उस समय भी बहुत से लेखक और साहित्यकार थे, मगर एक सआदत हसन मंटो ही थे, जो समाज और अपनी छवि की चिंता किये बगैर अपनी लेखनी से समाज की सच्चाईयों को परत-दर-परत कागज पर उतारते रहें.
आलोचनाओं से घिरा लेखक:
हालांकि, सआदत हसन मंटो को इन्हीं कारण से सामाजिक आलोचना भी सहनी पड़ी. आपको जानकर ये आश्चर्य होगा कि ये एक ऐसे कहानी कार और लेखक थे, जिन्हें अपनी लेखनी के कारण जेल जाना पड़ा और कई बार जुर्माने भी भरने पड़े. उस जमाने में लोग इन्हें अश्लील कंटेंट का लेखक मानते थे. लोग इनकी लेखनी पर तंज कसा करते थे, इनकी आलोचना किया करते थे. मगर मंटो तो मंटो थे, वे इसकी परवाह किये बगैर अपनी लेखनी से समाज को आइना दिखाते रहे.
मेरी लेखनी अश्लील है, तो तुम्हारा समाज भी गंदा है:
जब वे अपनी कहानियों और रचनाओँ को लेकर लोगों और समाज की आलोचना से खीझ जाते थे, तो वे जवाब दिया करते थे- अगर मेरी कहानियां आपको अश्लील या गंदी लग रही हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है. मेरी कहानियां तो सच दर्शाती हैं. वैसे तो उनकी कई रचनाएं लोकप्रिय हैं, मगर भारत-पाकिस्तान बंटवारे पर लिखी उनकी कहानियां जितनी शाश्वत लगती हैं, शायद यही वजह है कि वो आज भी युवाओँ के बीच सआदत हसन मंटो हैं.
वक्त से आगे की रचना लिखने वाला लेखक:
सच कहूं, तो सआदत हसन मंटो की गिनती ऐसे साहित्यकारों में की जाती है, जिनकी कलम ने अपने वक़्त से आगे की ऐसी रचनाएँ लिख डालीं, जिसे आज भी भारतीय समाज समझने की कोशिश कर रही है. इनका जन्म 11 मई 1912 को पुश्तैनी बैरिस्टरों के परिवार में हुआ था. इनकी प्रारंभिक पढ़ाई अमृत सर में हुई. कहा जाता है कि जालियावाले बाग ने मंटो के दिमाग पर कुछ ऐसी छाप छोड़ी कि उनके अंदर तभी से क्रांतिकारी विचार ने जगह बना ली. मंटो रूसी लेखकों और विचारकों से भी प्रभावित बताये जाते हैं.
लेखनी ने जेल और पागलखाने पहुंचा दिया:
इनकी कुछ कहानियों ने ही इन्हें मंटो बना दिया. हालांकि, इन कहानियों ने ही मंटो को जेल के दरवाजों तक पहुंचाया और इनके ऊपर अश्लीलता और भच्चापन का तोहमत लगा. इनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएं रही हैं, वो हैं-
- टोबा टेक सिंह
- बू
- खोल दो
- काली सलवार
- ठंडा गोश्त
कहते हैं लेखनी से मुहब्बत और समाज को आईना दिखाने की चाहत ने ही मंटो को जेल और पागलखाने पहुंचवा दिया. मात्र 42 साल की उम्र में इस महान रचनाकार ने 18 जनवरी 1955 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया. मंटो की जिंदगी के कुछ इनती रहस्यमी और दिलचस्प रही है, जिसे आज भी जानने के लिए युवा उनकी कहानियों को पढ़ते हैं. यही वजह है कि आज सआदत हसन मंटो पर फिल्म भी बन रही है. आज इनका जन्म दिन है.