नई दिल्ली: भारत के इतिहास को लेकर इतने सवाल हैं कि एक के बाद एक फिल्में बन रही हैं, ना सिर्फ बॉलीवुड में बल्कि विदेशी फिल्मकार भी उनकी धरती पर मौजूद भारतीय इतिहास से जुड़े साक्ष्यों, कहानियों के बिना पर फिल्में बनाने पर जुटे हैं. हाल ही में गुरिंदर चड्ढा ने द वायसराय हाउस बनाकर माउंटबेटन पर कुछ पॉजीटिव लाइट डालने की कोशिश की थी तो अब एक नई मूवी भी लंदन की जमीन से बनकर तैयार हो चुकी है.
इस फिल्म का नाम रखा गया है ‘द ब्लैक प्रिंस’ और इस मूवी में खालसा शासन के अंतिम सिख महाराज दलीप सिंह की कहानी को केन्द्र में रखा गया है. ये वही महाराजा दलीप सिंह हैं, जो अपने पिता महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे बेटे थे और दलीप सिंह ने ही महारानी विक्टोरिया कोहिनूर हीरा सौंपा था. कोहिनूर आज भी विवादों में है, भारत में कोई नहीं मानता था कि दलीप सिंह ने अपनी मर्जी से वो हीरा रानी को दिया होगा क्योंकि वो तो खुद महारानी के रहमोकरम पर थे.
मूवी के बारे मे जानने से पहले दलीप सिंह की कहानी जानना जरूरी है. चार भाइयों की हत्या के बाद दलीप सिंह को पांच साल की उम्र में ही महाराज घोषित करके महारानी जिंदा को उनका संरक्षक घोषित कर दिया गया, ये 1843 की बात है.
उस वक्त सिख साम्राज्य काफी बड़े हिस्से में था. पहले सिख युद्ध के बाद रानी जिंदा को गिरफ्तार करके पहले जेल में, फिर निर्वासित जिंदगी जीने पर मजबूर कर दिया गया. बाद में एक ब्रिटिश अधिकारी लॉगिन को उसका रीजेंट बना दिया गया. पंद्रह साल की उम्र में दलीप सिंह को लंदन भेज दिया गया. लंदन में विक्टोरिया से उनकी नजदीकी बढ़ गई. दलीप सिंह को ईसाई बना दिया गया और पांच लाख की पेंशन बांधकर उनसे कोहिनूर हीरा समेत तमाम कीमती साजो सामान बाकायदा संधि के तहत ले लिया गया.
बीच में कई बार लंदन से दलीप सिंह ने अपनी मां को खत लिखे, जो अंग्रेजों ने उन तक पहुंचने नहीं दिए. 1861 में जाकर दलीप सिंह भारत आकर कोलकाता के एक होटल में अपनी मां से मिले और फिर उन्हें अपने साथ ही ले गए. अपने जीवन के इन आखिरी दो सालों में महारानी जिंदा ने अपने बेटे को अपनी सिख विरासत और परम्पराओं के बारे में समझाया, जो अब तक ब्रिटिश रंग और ईसाई परम्पराओं में रमने लगा था.
उसे बताया कि कैसे सिख गुरूओं ने सिख आन बान शान के लिए अपनी पूरी जिंदगी कौम पर कुर्बान कर दी, कैसे करोड़ों सिख महाराजा रणजीत सिंह के बेटे में अगाध श्रद्धा रखते हैं. दिलीप सिंह 1886 में सिख धर्म में वापस हो गए थे.
दलीप सिंह को लेकर तमाम बातें कही जाती हैं, कि कैसे उन्होंने 17000 एकड़ का फॉर्म इंगलैंड में खरीदा था, कि कैसे उन्होंने एक विदेशी लड़की से शादी कर ली थी, कि कैसे क्वीन विक्टोरिया ने उन्हें ब्लैक प्रिंस ऑफ पर्थशायर की उपाधि दी थी, कि कैसे अपनी मां से मिलने के बाद वो वापस आकर अपने देश, अपने सिख भाइयों के लिए कुछ करना चाहते थे, कि कैसे उनकी मौत पेरिस में हुई और उनकी डैडबॉडी को अंग्रेजों ने ईसाई रीतिरिवाज से दफना दिया था.
ढेरों कहानियां हैं और इंडिया में जन्मे लंदन के एक्टर कवि राज अपनी मूवी ‘द ब्लैक प्रिंस’ के जरिए ये सब सामने लाना चाहते हैं. उनका कहना है कि कोहिनूर का विवाद हो या फिर दलीप सिंह के धर्म बदलने का या फिर चाहे उनकी ऐश से भरी लंदन लाइफ का, आपको सब सुनी-सुनाई कहानियां झूठी लगने लगेंगी.
मूवी में दलीप सिंह के रोल के लिए चुना गया पंजाब के एक ऐसे गायक का जो पंजाबी गायकों में काफी पढा लिखा माना जाता है, उनका नाम है सतिंदर सरताज, जो अपने गीत साई से अपनी पहचान भी बना चुके हैं. शबाना आजमी को उनकी मां यानी महारानी जिंदा के रोल के लिए चुना गया है. डॉ जॉन लॉगिन के रोल में जेसन फ्लेमिंग होंगे. फिल्म के नायक सतिंदर सरताज ने ही फिल्म के पंजाबी गीतों को कम्पोज किया है.
भारत में ये मूवी इसी महीने 19 मई को रिलीज होने जा रही है. हालांकि गिनती के 250 से 300 थिएटर्स में रिलीज होगी. कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीवल्स में अवॉर्ड्स जीत चुकी ये मूवी भारत के अलावा अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में भी कई कई स्क्रीन्स पर रिलीज होगी, साथ ही बांग्ला देश, नेपाल, फ्रांस, नीदरलैंड, जर्मनी, हांगकांग, सिंगापुर, इंडोनेशिया, केन्या, मलेशिया और स्वीडन में भी गिनती की स्क्रीन्स पर रिलीज होगी.
तो इस तरह से क्वीन विक्टोरिया के इतिहास से जुड़ी इस साल रिलीज होने वाली दो फिल्मों में से ये पहली है, दूसरी बाद में रिलीज होगी, जो क्वीन विक्टोरिया और आगरा के अब्दुल के रिश्तों की कहानी है विक्टोरिया एंड अब्दुल.