नई दिल्ली: भारत सॉफ्टवेयर के फील्ड में महाशक्ति बन चुका है, लेकिन संघ इसे दो कदम आगे ले जाने के मूड में है. इसके लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां शुरू हो गई हैं. आईआईटी जैसे बड़े तकनीकी संस्थानों से बात हो रही है. आईटी फील्ड की निजी कंपनियों से चर्चा हो रही है. यहां तक कि कुछ सरकारी विभागों से भी इस बारे में बात की जा रही है.संघ की तरफ से इस मिशन की कमान संभाली है संघ के आनुषांगिक संगठन भारतीय शिक्षण मंडल (बीएसएम) ने.
बता दें कि भारतीय शिक्षण मंडल संघ के उन कई संगठनों में सबसे प्रमुख है, जो एजुकेशन के फील्ड में काम करते हैं. बीएसएम हायर एजुकेशन और तकनीकी एजुकेशन के क्षेत्र में काम करता है, खासकर रिसर्च सेक्टर में. हाल ही में जब पाकिस्तान के हैकर्स ने देश की जानी-मानी यूनिवर्सिटीज की साइट्स को हैक करके उन पर पाक झंडा फहराया, तो भारत के अपने डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की चर्चा फिर से तेज हो गई.
दरअसल, भारत में काम कर रहीं कई बड़ी साइट्स या सोशल मीडिया कंपनीज यहां तक कि फोन कंपनीज के सर्वर भी देश से बाहर रखे हैं. यानी कि देश का काफी जरूरी डाटा विदेशों में रहता है. कल को उस देश से रिश्ते बिगड़ते हैं तो मुश्किलें भी हो सकती हैं.
इन खबर डॉट कॉम (inkhabar.com) से बात करते हुए बीएसएम के राष्ट्रीय संगठन मंत्री मुकुल कानितकर कहते हैं कि ‘’भारतीयों को गूगल, जीमेल और फेसबुक जैसी साइट्स पर अपनी निर्भरता कम करनी पड़ेगी, क्योंकि इनके सर्वर देश से बाहर हैं. कल को उन देशों से रिश्ते खराब हुए तो हमारा काफी महत्वपूर्ण डाटा संकट में पड़ सकता है. हमें केवल सॉफ्टवेयर में ही नहीं, हार्डवेयर के फील्ड में भी काफी सक्षम बनना होगा.
उनका कहना है कि ‘’चीन ने गूगल के मुकाबले अपना सर्च इंजन बैडू, फेसबुक के मुकाबले अपनी सोशल साइट रेनरेन और ट्विटर का जवाब सेन वीबो लांच कर दिया है और भारत के लोगों के ऐसे दमदार विकल्प है हीं नहीं, जो गूगल, फेसबुक, ट्विटर जैसों को टक्कर दे सके.“
संघ की ये पहल ऐसी है, जिस पर हो सकता है सवाल उठें, लोग ग्लोबल भावना के खिलाफ बताएं या फिर भगवाकरण का नाम दें और शायद इसीलिए संघ ने अभी तक अपनी इस पहले के बारे में कभी मीडिया में खुलकर चर्चा नहीं की. दूसरी वजह ये भी है कि अभी तक चर्चा के स्तर पर काम काफी आगे तो बढ़ चुका है, लेकिन कोई ऐसा विकल्प सामने नहीं आया, जिसको कि दुनियां के सामने इतने बड़े ब्रांड्स के बेहतर विकल्प के तौर पर पेश किया जा सके.
कई और स्तर पर भी काम होना शुरू हुआ है, संघ समर्थित मोदी सरकार ने अपने मंत्रियों और अधिकारियों को साफ निर्देश दिया है कि जीमेल या रैडिफ जैसे ईमेल सर्विस की बजाय सरकारी मेल सर्विस का इस्तेमाल करें. साइबर सिक्योरिटी पर भी सरकार ने डीआरडीओ, सीडेक और आईआईटी जैसे संस्थानों को काम पर लगाया है. भारत सरकार की आईटी मिनिस्ट्री भी इस दिशा में काम कर रही है.
हाल ही में कानपुर आईआईटी के लिए एक साइबर सिक्योरिटी सेंटर प्रस्तावित हुआ है. सरकार के लगातार कैशलेस इकोनॉमी पर जोर देने की वजह से इसकी जरूरत और भी ज्यादा महसूस की जा रही है. वैसे समस्या केवल गूगल, फेसबुक, जीमेल, ट्विटर के देसी वर्जन तैयार करने की ही नहीं है, लोग उन्हें अपनाएं वो भी अपनी मर्जी से, इसे करना मुश्किल होगा क्योंकि व्हाट्सएप का देसी विकल्प टेलीग्राम अभी तक जूझ रहा है.