अब सुलझ सकता है ब्रह्माण्ड का रहस्य, ब्लैक होल की तस्वीर लेने में कामयाब हुए वैज्ञानिक

ह्माण्ड बनने के रहस्य को सुलझाने के मामले में खगोलशास्त्रियों को एक बहुत बड़ी कामयाबी हाथ लगी है. खगोलशास्त्रियों का कहना है कि पहली बार वे ब्लैक होल की तस्वीर लेने में कामयाब हुए हैं. बताया जा रहा है कि हवाई से लेकर अंटार्कटिका और स्पेन में टेलिस्कोप्स का जाल बिछाकर लगातार पांच रातों तक अंतरिक्ष में नजर रखने के बाद खगोलशास्त्रियों को यह सफलता मिली है. हालांकि, जानकारों का कहना है कि जो तस्वीर हाथ लगी है, उसे तैयार करने में महीनों का समय लग सकता है.

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अब सुलझ सकता है ब्रह्माण्ड का रहस्य, ब्लैक होल की तस्वीर लेने में कामयाब हुए वैज्ञानिक

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  • April 13, 2017 11:46 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago

नई दिल्ली: ब्रह्माण्ड बनने के रहस्य को सुलझाने के मामले में खगोलशास्त्रियों को एक बहुत बड़ी कामयाबी हाथ लगी है. खगोलशास्त्रियों का कहना है कि पहली बार वे ब्लैक होल की तस्वीर लेने में कामयाब हुए हैं. बताया जा रहा है कि हवाई से लेकर अंटार्कटिका और स्पेन में टेलिस्कोप्स का जाल बिछाकर लगातार पांच रातों तक अंतरिक्ष में नजर रखने के बाद खगोलशास्त्रियों को यह सफलता मिली है. हालांकि, जानकारों का कहना है कि जो तस्वीर हाथ लगी है, उसे तैयार करने में महीनों का समय लग सकता है.

बताया जा रहा है कि अगर वैज्ञानिक इस काम में सफल रहते हैं, तो उन्हें इस ब्रह्मांड के निर्माण से जुड़े रहस्य को समझने में काफी सहायता मिलेगी. अगर उनकी यह कोशिश रंग लाती है, तो ब्रह्मांड किस चीज से बना और कैसे अस्तित्व में आया जैसे अहम रहस्यों को सुलझाने में भी बहुत मदद मिलेगी.
 
 
इंटरनैशनल रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर रेडियो ऐस्ट्रोनॉमी (IRAM) में खगोलशास्त्री माइकल ब्रिमर ने बताया कि ‘इतना बड़ा टेलिस्कोप बनाना कि वह खुद अपने भारी वजन में दबकर पस्त हो जाए, इसकी जगह हमने 8 वेधशालाओं को एक साथ इस तरह जोड़ा जैसे कि किसी विशाल शीशे के टुकड़ों को आपस में जोड़ते हैं. ऐसा करके हमें एक ऐसा आभासी टेलिस्कोप मिला, जो कि आकार में करीब-करीब धरती जितना ही बड़ा है. इसका व्यास करीब 10,000 किलोमीटर है. यह वर्चुअल टेलिस्कोप इतना ताकतवर है कि चांद की सतह पर पड़ी एक गोल्फ बॉल को भी देख सकता है. इतिहास में यह पहला मौका है जब हमारे पास एक ऐसी तकनीक है, जिसकी मदद से हम ब्लैक होल को विस्तार और बारीकी से देख सकते हैं.’
 
गौरतलब है कि टेलिस्कोप जितना बड़ा होता है, उतने ही स्पष्टता से उसमें चीजें देखी जा सकती हैं. इससे ली गई तस्वीरों का रेजॉलूशन भी काफी स्पष्ट होता है. जिस ब्लैक होल को वैज्ञानिक देखने की कोशिश कर रहे हैं, वह आकार में काफी बड़ा है. यह ब्लैक होल हमारी अपनी आकाशगंगा ‘मिल्की वे’ के बीचो-बीच है. यह ब्लैक होल धरती से करीब 26,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है.
 
1 प्रकाश वर्ष लगभग 15 करोड़ किलोमीटर जितना होता है. यह ब्लैक होल सैजिटेरियस ए के पास है. इसका वजन 40 लाख सूर्यों के बराबर है. इसकी गुरुत्वाकर्षण क्षमता बहुत ज्यादा है और यह आसपास के सारे पिंडों को अपनी ओर खींचकर सोख लेता है. ब्लैक होल की गुरुत्वीय क्षमता इतनी ज्यादा होती है कि वह ग्रहों सहित अपने आसपास आने वाले किसी भी पदार्थ या पिंड को खुद में सोख लेता है.
 
 
विशेषज्ञों की मानें, तो ब्लैक होल्स के अंदर का हिस्सा तो नहीं दिखता, लेकिन बाहरी हिस्से में बेहद तेज रोशनी नजर आती है. इसमें एक दीवार भी होती है. इस दीवार को पार करने की संभावनाओं के बारे में बोलते हुए मशहूर खगोलशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने कहा था कि यह एक डोंगी में बैठकर नियाग्रा फॉल्स पार करने जैसा है. अगर आप नियाग्रा फॉल्स के ऊपर हैं और आप तेजी से पैडलिंग करें, तो मुमकिन है कि आप इसे पार कर लेंगे. लेकिन अगर आप इसके किनारे पर पलट जाते हैं, तो फिर आपके लिए कोई उम्मीद नहीं है.
 
अब ये देखना होगा कि जो तस्वीरें हाथ लगी हैं, वो कब तक डेवलप होती हैं और उन तस्वीरों से खगोलशास्त्रियों को ब्रह्माण्ड का रहस्य सुलझाने में कितनी मदद मिलती है.

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