लखनऊ. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने सरकारी स्कूलों में नर्सरी से ही बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने का आदेश दिया है ताकि आगे चलकर उनको इस भाषा को समझने में दिक्कतों का सामना न करना पड़े. लेकिन सवाल इस बात का है जब यहां के शिक्षकों को ही अंग्रेजी नहीं आती तो बच्चों को कौन पढ़ाएगा.
लेकिन यह दोष सिर्फ शिक्षकों का ही नहीं है. हमारी शिक्ष व्यवस्था पर भी सवाल है. .यूपी के बाराबंकी जिले में जब हमारी टीम ने जूनियर हाईस्कूल में जाकर वहां के शिक्षकों से बात की तो हैरानी वाली तस्वीर सामने आई.
बच्चों को छोड़िए वहां के शिक्षकों को भी फरवरी तक की स्पेलिंग नहीं आती है. ये अध्यापक पिछले 5 से 6 सालों से इन स्कूलों में पढ़ा रही हैं. इतना ही नहीं इन अध्यापकों को सामान्य जानकारी तक नहीं है.
ऐसे में सवाल इस बात क्या हमारे सरकारी स्कूलों की शिक्षा की हालत इतनी गिर गई है और अगर यही हाल पूरे प्रदेश के स्कूलों का है तो कौन से अभिभावक अपने बच्चों को इन स्कूलों में भेजना चाहेंगे.
दूसरी ओर इन स्कूलों की में भीड़ को देखकर सरकारें अभी तक भले ही अपना सीना ठोंक लें लेकिन सच्चाई तो यह है कि यहां आने वाले बच्चे सिर्फ इसलिए भेजे जा रहे हैं ताकि सरकार की ओर से मिलने वाली योजनाओं का लाभ उठाया जा सके. इन बच्चों के अभिभावक भी शिक्षा को लेकर इतने जागरुक नहीं है.
हाईकोर्ट के फैसले आई याद
इस खबर के देखने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश की याद आ गई है जिसमें कहा गया है कि आईएएस और पीसीएस अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजें ताकि शिक्षा का स्तर सुधारा जा सके.
लेकिन कोर्ट के इस फैसले का आज तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया है. कोर्ट का मानना था कि अगर अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ेंगे तो अध्यापकों पर भी अच्छी शिक्षा देने का दबाव रहेगा और अधिकारी भी इन स्कूलों खास नजर रखेंगे.