नई दिल्ली : हेट स्पीच के कानून के दायरे को बढाने की कवायद शुरु हो गई है. हेट स्पीच के कानून का विस्तार करने के लिए लॉ कमिशन ने केंद्र सरकार को सिफारिश की है. अपनी रिपोर्ट में कमिशन ने कहा है कि किसी भी जीवंत लोकतंत्र के लिए ये जरूरी है कि उसमें मतभेद और विरोधी विचार प्रकट करने के लिए भी जगह हो. लेकिन ये मतभेद ऐेसा होना चाहिए जो सामाजिक व्यवस्था की लक्ष्मण रेखा को ना लांघे. ये मतभेद इस तरह प्रकट ना किए जाएं जिससे पब्लिक आर्डर बिगडने के आसार बन जाएं.
फिलहाल हेट स्पीच कानून नफरत फैलाने वाले बयान के दायरे में आता है लेकिन इसके दायरे को व्यापक करने के लिए लॉ कमिशन ने सिफारिश की है. लॉ कमिशन के चेयरमैन जस्टिस बीएस चौहान ने लॉ कमिशन की सिफारिश सरकार को भेजते हुए कहा है कि आईपीसी में इसके लिए बदलाव की जरूरत है. लॉ कमिशन की 267 वीं रिपोर्ट में नफरत वाले भाषण या बयान से संबंधित कानूनी प्रावधान में बदलाव कर इसके मानदंड व्यापक करने की सिफारिश की गई है.
कानून मंत्रालय को सौंपे गए ‘नफरत फैलाने वाले बयान’ रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों में संशोधन करने की जरुरत है ताकि ‘नफरत भडकाने पर रोक’ और ‘कुछ मामलों में भय, बेचैनी या हिंसा के लिए उकसाने’ के प्रावधानों को जोडा जा सके. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘हिंसा के लिए उकसाने को ही नफरत फैलाने वाले बयान के लिए एकमात्र मापदंड नहीं माना जा सकता. ऐसे बयान जो हिंसा नहीं फैलाते हैं उनमें भी समाज के एक हिस्से या किसी व्यक्ति को हाशिये पर धकेलने की संभावना होती है.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘इन बयानों से कई बार हिंसा नहीं भडकती बल्कि उनसे समाज में मौजूदा भेदभावकारी रुख को बढ़ावा मिल सकता है. इस प्रकार भेदभाव के लिए उकसाना भी एक महत्वपूर्ण कारक है जो घृणा फैलाने वाले बयान की पहचान में योगदान करता है.
कमिशन ने ‘नफरत भडकाने पर रोक के मामले में दो साल की सजा और जुर्माने और ‘कुछ मामलों में भय, बेचैनी या हिंसा के लिए उकसाने के मामले में एक साल की सजा और जुर्माने या बिना जुर्माने के प्रावधान की सिफारिश की है. खास बात ये है कि 2014 में सुप्रीम कोर्ट में केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस चौहान ने हेट स्पीच के मुद्दे को ला कमिशन को भेजा था.