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रिव्यू: अलग हटकर देखने वालों के लिए है फिल्लौरी

यूं तो अच्छे भूत की स्टोरी भूतनाथ में भी थी, लेकिन फिल्लोरी में इसे दो कदम आगे बढ़ा दिया गया है और इसी लिए शायद इसे ओरिजनल माना जाए. इस मूवी में भारत की शादियों में सदाबाहर मांगलिक समस्या के साथ साथ जलियां वाला बाग जैसी ऐतिहासिक घटना से कैसे फन और रोमांस की चाशनी में लपेट कर पेश किया गया है, रंगून के विशाल भारद्वाज को तो कम से कम सीख ही लेना चाहिए.

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  • March 24, 2017 3:07 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली: यूं तो अच्छे भूत की स्टोरी भूतनाथ में भी थी, लेकिन फिल्लोरी में इसे दो कदम आगे बढ़ा दिया गया है और इसी लिए शायद इसे ओरिजनल माना जाए. इस मूवी में भारत की शादियों में सदाबाहर मांगलिक समस्या के साथ साथ जलियां वाला बाग जैसी ऐतिहासिक घटना से कैसे फन और रोमांस की चाशनी में लपेट कर पेश किया गया है, रंगून के विशाल भारद्वाज को तो कम से कम सीख ही लेना चाहिए. मूवी छोटे बजट की है, एक नए आइडिया के साथ है, लेकिन अनुष्का बड़े स्टारों की मौजूदगी में केवल अपने दम पर उठाई है, इसलिए पैसे तो वसूल ही लेगी. कुछ हटकर देखने वालों के लिए है फिल्लौरी.
 
 
चूंकि अंशाई लाल पहली बार डायरेक्ट कर रहे थे, इस लिहाज से उन्होंने काफी बेहतर मूवी बनाई है. हालांकि ये लाइनें पूरी फिल्म देखने के बाद ही लिखी जा सकती हैं, बीच में मूवी एक हिस्से में काफी बोर भी करती है. कहानी है एक ऐसे लड़के की जो कनाडा से शादी करने आया है, लेकिन चूंकि वो मांगलिक है इसलिए एक पेड़ से उसकी शादी करके पेड़ काट दिया जाता है और पेड़ पर रह रही एक भूतनी यानी अनुष्का शर्मा उसके गले पड़ जाती है. ऐसे में जाहिर है उस भूतनी को मुक्ति दिलाना ही मूवी का क्लाइमेक्स है.
 
 
लेकिन भूतनी कैसे बनी, ये बताने के डायरेक्टर मूवी को 98 साल पहले यानी 1919 में ले जाता है कि कैसे एक गांव में फूहड़ गानों को गाने वाले एक अच्छे गायक पर एक सीक्रेट सुपर स्टार यानी फिल्लौरी नाम से कविता लिखने वाली शशि (अनुष्का) फिदा हो जाती है और उसको एक बड़ा गायक बना देती है.
 
 
लोग एक कहानी से बोर ना हों, इसलिए डायरेक्टर दोनों कहानियों को एक एक सीन में दिखाता है, जिसमें शुरूआती फन लोगों को बांध देता है. लेकिन 98 साल पहले का गांव, कविता, मिर्जया और साहिबा आपको कुछ मिनटों के लिए बोर भी कर सकते हैं. लेकिन पंजाबी म्यूजिक से सराबोर कुछ गाने अच्छे बन पड़े हैं. कहानी का क्लाइमेक्स होता है जलियां वाले बाग में, जो रिस्क विशाल भारद्वाज ने लिया, वही रिस्क इस मूवी में भी लिया गया, यानी ऐतिहासिक कनेक्शन.
 
 
लेकिन इस मूवी में इतना बड़ा कनेक्शन बनाने के बावजूद अंदर से सवाल नहीं उठते कि इतिहास पर इसका कोई फर्क पड़ेगा, विशाल ये बताने की कोशिश कर रहे थे कि उनकी तलवार आजाद हिंद फौज के बहुत काम आएगी, जो बात लोगों को पचेगी नहीं. इस मूवी में तो आपको जलियां वाला बाग में मरने वालों के भूत दिखेंगे, फिर भी आपको अखरेगा नहीं. यहां तक कि भूतों को रोते और प्रेग्नेंट होते भी देखेंगे.
 
 
‘लाइफ ऑफ पाई’ वाले सूरज शर्मा ने वाकई में फिर से खुद को एक कन्फ्यूज्ड दूल्हे की भूमिका में बेहतर कलाकार साबित किया है, अनुष्का और दिलजीत असरदार हैं, महरीन पीरजादा एक कन्फ्यूज्ड दूल्हे की दुल्हन के तौर पर जमी हैं. हलकी फुलकी मूवी है, दो मैसेज भी छोड़ जाती है, एक तरफ पेड़ से शादी को लेकर दूसरे जलियां वाला बाग जैसे हादसों में केवल एक कहानी नहीं होती, वहां सैकड़ों कहानियां होती हैं, हर मरने वाले की और उससे जुड़े लोगों की अपनी अपनी कहानियां होती हैं, बस वो सामने नहीं आतीं. 

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