नई दिल्ली: नारद स्टिंग ऑपरेशन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने CBI जांच पर रोक लगाने की मांग को ठुकरा दिया है. इस मामले में तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं को कैमरे पर कथित तौर पर धन लेते हुए दिखाया गया था.
नारद स्टिंग ऑपरेशन मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने CBI जांच के आदेश दिए थे. हाई कोर्ट के इसी फैसले को तृणमूल कांग्रेस नेता स्वागत राय के अलावा दूसरे नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. TMC नेताओं ने इस मामले की जांच SIT से कराने की मांग की थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को एक महीने में जांच पूरी करने के आदेश दिए है. वहीं हाई कोर्ट ने 72 घंटे में जांच पूरी करने को कहा था.
प्राथमिकी दर्ज करे CBI
अदालत ने कहा कि प्रारंभिक जांच पूरी होने के बाद जरूरत पड़ने पर सीबीआई प्राथमिकी दर्ज करे और उसके बाद औपचारिक जांच शुरू करे. रिपोर्ट्स के मुताबिक पश्चिम बंगाल में वर्ष 2016 विधानसभा चुनाव से पहले नारद स्टिंग के टेप विभिन्न समाचार संगठनों को जारी किए गए थे. वहीं सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी, चंडीगढ़ की रिपोर्ट में इन टेपों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होने की बात कही गई थी.
सीबीआई उपयुक्त एजेंसी
कोर्ट का कहना है कि मामले की स्वतंत्र जांच के लिए सीबीआई सबसे उपयुक्त एजेंसी है. स्टिंग टेपों की विश्वसनीयता के परीक्षण के बाद इनकी स्वतंत्र जांच की मांग करते हुए हाई कोर्ट में तीन याचिकाएं दायर की गईं थीं. वहीं पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले इस विवादास्पद नारद स्टिंग ऑपरेशन में कथित तौर पर तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं और एक आईपीएस अधिकारी को धन स्वीकारते दिखाया गया था.
एक भी पाई नहीं ली
वहीं ममता बनर्जी ने 17 जून को कोलकाता पुलिस को इस नारद स्टिंग ऑपरेशन की जांच का आदेश दिया था और जोर देकर कहा था कि उनकी पार्टी ने सारदा चिटफंड घोटाले और नारद स्टिंग ऑपरेशन में शामिल किसी से ‘एक भी पाई’ नहीं ली थी. वहीं नारद न्यूज के संपादक मैथ्यू सैम्यूल ने अदालत को बताया कि रिकॉर्डिंग आईफोन की मदद से की गई और उसे लैपटॉप में डाला गया जहां से उसे एक पेन ड्राइव में लिया गया.
बता दें कि कलकत्ता हाई कोर्ट ने नारद स्टिंग मामले में शुक्रवार को सीबीआई को प्रारंभिक जांच के आदेश दिए थे. इसमें तृणमूल कांग्रेस के कई नेता कथित तौर पर घूस लेते नजर आए थे. कोर्ट ने सीबीआई को 24 घंटे के भीतर स्टिंग ऑपरेशन से संबंधित सभी सामग्री और उपकरण अपने कब्जे में लेने और 72 घंटे के भीतर प्रारंभिक जांच को निष्कर्ष पर पहुंचाने के निर्देश दिए.