नई दिल्ली. नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने नरेंद्र मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की है. नालंदा विश्वविद्यालय के पूर्व चांसलर सेन ने न्यूयॉर्क रिव्यु ऑफ़ बुक्स के अगस्त संस्करण में जिक्र किया है कि मोदी सरकार देश की सभी शैक्षणिक संस्थानों पर अपना अधिकार चाहती है. यही नहीं अंग्रेजी अखबार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ से बात […]
नई दिल्ली. नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने नरेंद्र मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की है. नालंदा विश्वविद्यालय के पूर्व चांसलर सेन ने न्यूयॉर्क रिव्यु ऑफ़ बुक्स के अगस्त संस्करण में जिक्र किया है कि मोदी सरकार देश की सभी शैक्षणिक संस्थानों पर अपना अधिकार चाहती है.
यही नहीं अंग्रेजी अखबार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ से बात करते हुए सेन ने स्वीकार किया कि ये सरकार शैक्षणिक संस्थानों में कुछ ज्यादा ही दखल दे रही है. इंटरव्यू के दौरान सेन ने कहा, ‘आईआईटी दिल्ली से अचानक रघुनाथ के शेवगांवकर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. आईआईटी बॉम्बे के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष अनिल काकोदकर यह कहते हुए आईआईटी से अलग हुए कि वे आगे सरकार की किसी तरह की मदद नहीं कर पाएंगे और आईआईएम के लिए तो सरकार नया बिल ला चुकी है. इसके जरिए वह संस्थानों में डॉयरेक्टर की सीधी भर्ती करेगी.’
क्या है पूरा विवाद?
इसी साल सेन ने नालंदा में अपने दूसरे चांसलर के कार्यकाल से अपना नाम वापस लिया था. उन्होंने कहा था कि सरकार नहीं चाहती कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर बने रहें. इस पर सरकार ने कहा कि सेन के कार्यकाल में कटौती करने का कोई प्रयास नहीं है. उसे नालंदा विश्वविद्यालय के संचालक बोर्ड से मंजूर मिनट्स नहीं प्राप्त हुए हैं. जबकि सेन की तरफ से कहा गया कि मिनट्स लगभग पंद्रह दिन पहले भेज दिए गए थे और सभी ने मिनट्स को मंत्रालय के लिए मंजूरी प्रदान कर दी थी.
सेन ने जीबीएनयू को लिखे पत्र में नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर के दूसरे कार्यकाल के लिए अपनी उम्मीदवारी वापस लेने की बात कही थी और अपने नाम पर विश्वविद्यालय के विजिटर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मुहर के लिए सरकार से मंजूरी मिलने में देरी का आरोप लगाया था, जबकि सिफारिश एक महीने पहले भेजी का चुकी थी.
शिक्षा और स्वास्थ्य पर उठाए सवाल
सेन ने मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार की नीतियों से अर्थव्यवस्था चरमरा रही है. सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए जो बजट तैयार किया है, वह किसी भी तरह से मान्य नहीं है. सेन ने कहा, ‘मैं इंडस्ट्री विरोधी नहीं हूं लेकिन आप बिना स्वस्थ और शिक्षित लोगों के इंडस्ट्री जाइंट नहीं बन सकते. मोदी सरकार अपने एक साल में बाजार की आवश्यकता समझने में नाकाम रही है.’
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी कई महत्वाकांक्षी योजनाओं का बजट घटा दिया है. सर्व शिक्षा अभियान के बजट में भारी कटौती करते हुए सिर्फ 2000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए है. पिछले साल इसके लिए 9,193.75 करोड़ का बजट रखा गया था. वहीं आंगनवाड़ी में बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा की समेकित बाल विकास योजना (ICDS) के बजट में 9858 करोड़ रुपये की भारी कटौती कर दी गई है.