नई दिल्ली: नज़र उठा कर न देखना, ऐ दुश्मन मेरे देश को…हो सकता है शहीद हो जाउं मैं भी…लेकिन तुझे मार कर हीं जाऊंगा. कसम मुझे इस माटी की, कुछ ऐसा मैं कर जाऊंगा. ये हुंकार हैं BSF के डीआईजी मदन सिंह राठौर की है. जिनके शौर्य की कसमें हर जवान खाता है. जो वतन और माटी के लिए जीता है.
शौर्यगाथा में डीआईजी मदन सिंह राठौर अपने शौर्य की तूफानी कहानी आपके सामने खुद रख रहे हैं. जिसके लिए तीन-तीन बार भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें सम्मानित किया. आतंकवादियों ने पूरा लश्कर झोंक रखा था. वो चाहते थे कि कैसे भी 28 अगस्त 2003 को जम्मू-कश्मीर में प्रधानमंत्री की मौजूदगी के दौरान ऐसा कर दें कि तहलका मच जाएं.
दूसरी तरफ BSF के चौकस जवान जी जान से लगे हुए थे कि किसी सूरत में सिक्का भी न खड़के. BSF की पट्रोलिंग भी इसी तरह हो रही थी. इस दौरान सबसे सेनसेटिव इलाका था लाल चौक. जहां की जिम्मेवारी मदन सिंह राठौर की थी. दिल्ली में जो अहमियत इंडिया गेट की है, मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया की है. वैसा ही श्रीनगर में लाल चौक है.
लाल चौक से ही डाउन टाउन और शहर के दूसरे हिस्सों का एक तरह से भौगोलिक बंटबारा होता है. यहीं पर ग्रीन वे होटल था और उसके बगल में CTO यानी सेंट्रल टेलीग्राफ ऑफिस भी. शाम के करीब पांच बजे लाल चौक का एक हिस्सा ग्रेनेड के धमाके से थर्रा उठा.
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