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क्या PM मोदी को रोकने के लिए अब राष्ट्रीय मोर्चा बनेगा ?

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर चली थी, जिस पर 2015 में दिल्ली और बिहार विधानसभा के चुनावों के नतीजों से सवाल उठने लगा था. इसलिए सबकी निगाहें पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे पर थीं कि क्या वोटरों के दिलो-दिमाग पर मोदी का जादू चलेगा ? इसका जवाब अब देश और दुनिया के सामने है.

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  • March 11, 2017 5:03 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली: साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर चली थी, जिस पर 2015 में दिल्ली और बिहार विधानसभा के चुनावों के नतीजों से सवाल उठने लगा था. इसलिए सबकी निगाहें पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे पर थीं कि क्या वोटरों के दिलो-दिमाग पर मोदी का जादू चलेगा ? इसका जवाब अब देश और दुनिया के सामने है.
 
पांच राज्यों में सबसे बड़े और राजनीति के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण यूपी में मोदी की आंधी इस कदर चली कि उसमें समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन, बीएसपी और आरएलडी जैसी पार्टियों के होश उड़ गए हैं. यूपी की 403 में से 325 सीटें बीजेपी और उसकी सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल के हिस्से आई हैं. यानी बीजेपी का बहुमत तीन चौथाई नहीं, बल्कि 80 फीसदी से भी ज्यादा है. इनमें 312 सीटें अकेले बीजेपी की हैं.
 
उत्तराखंड में भी बीजेपी ने 70 में से 57 सीटें जीतकर सत्ता में ज़बर्दस्त वापसी की है. यहां तक कि जिस मणिपुर में बीजेपी 2012 में सिर्फ 19 सीटों पर चुनाव लड़कर खाता तक नहीं खोल पाई थी, इस बार वहां भी 21 सीटें जीतकर सत्ता की रेस में है और जोड़-तोड़ करके सरकार भी बना सकती है. गोवा में सत्ता विरोधी लहर और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी-शिवसेना के वोट काटने के बावजूद बीजेपी 13 सीटें जीतने में कामयाब रही है.
 
सिर्फ पंजाब ही इकलौता राज्य है, जहां बीजेपी का प्रदर्शन बुरा रहा. पंजाब में बीजेपी ने बस तीन सीटें जीती हैं. उसकी वजह भी सबको पता है कि पंजाब में बीजेपी कभी राजनीतिक ताकत बन ही नहीं पाई. वो अकाली दल की पिछलग्गू बनकर रही है. इसलिए पंजाब में मोदी का ना तो इम्तिहान था और ना ही वहां कुछ दांव पर था.
 
चुनाव नतीजों के लिहाज से सबसे ज्यादा अहमियत यूपी की थी, जहां बीजेपी मोदी के नाम और काम पर ही वोट मांग रही थी. यूपी में गठबंधन की राजनीति का भी टेस्ट था, जो नाकाम साबित हुआ. वजह ये थी कि समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन में बीएसपी नहीं थी, जिससे वोटों का बंटवारा हुआ और बीजेपी को बंपर जीत मिली, क्योंकि 2014 वाले वोट बैंक पर मोदी की पकड़ थोड़ी भी ढीली नहीं हुई.
इन नतीजों के बाद अब ये सवाल बड़ा हो गया है कि क्या मोदी की आंधी थामने के लिए बीजेपी विरोधी सभी पार्टियों का गठबंधन ही इकलौता रास्ता बचा है ? क्या 2019 में मोदी को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई मोर्चा बनेगा या अलग-अलग लड़कर मोदी को वॉक ओवर दे देगा विपक्ष.
 
(वीडियो में देखें पूरा शो)

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