जानें होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हिंदूओं का प्रमुख त्योहार होली है, इस त्योहार हो सभी मिलजुल कर खुशियों के साथ मनाते हैं. होली खेलने से पहले होलिका दहन होता है. ज्योतिष के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथी को प्रदोष काल में होलिका दहन किया जाता है.

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जानें होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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  • March 10, 2017 6:52 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
 
नई दिल्ली: हिंदूओं का प्रमुख त्योहार होली है, इस त्योहार हो सभी मिलजुल कर खुशियों के साथ मनाते हैं. होली खेलने से पहले आज होलिका दहन होगा. ज्योतिष के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथी को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है.
 
इस बार होली 13 मार्च को खेली जाएगी. इसस पहले 12 मार्च को पूर्णिमा उदय व्यापिनी है. इसी दिन भद्रा का मुख शाम 5 बजकर 35 मिनट से 7 बजकर 33 मिनट तक है. इस वजह से इस साल होलिका दहन सांय 6 बजकर 30 मिनट से 8 बजकर 35 मिनट तक किया जाएगा. ऐसा भी माना गया है होलिका दहन या पूजन भद्रा के मुख को त्याग करके करना शुभफलदायक होता है. 
 
वहीं होलिका दहन के बाद इसकी राख को घर के चारों ओर और दरवाजे पर छिड़कना चाहिए. ऐसा करने से घर में नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश नहीं होता है.
 
पूजन विधि-
होलिका में आग लगाने से पूर्व होली का पूजन करने का भी विधान है. इसकी पूजा करते समय पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए. पूजन करने के लिए माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पॉच प्रकार के अनाज में गेंहूं की बालियॉ और साथ में एक लोटा जल जरूर रखें.
 
 
इसलिए होता है होलिका दहन-
यह कहानी होलिका और प्रहलाद की हैं. कहानी की शुरुआत विष्णु के परम भक्त प्रहलाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप नास्तिक से होती है. उसने अपने पुत्र से विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए कई प्रयास किए लेकिन उनके अनेको प्रयासों के बावजूद वह असफल रहे. इससे कुछ ना हो सका तो हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मार डालने का निर्णय लिया, लेकिन फिर भी अपने पुत्र को मारने की उसकी कोशिशें असफल रहीं. इसके बाद उसने यह कार्य अपनी बहन होलिका को सौंपा. होलिका को यह वरदान मिला था कि वह कभी जल नहीं सकती और फिर होलिका अपने भाई की बात मान कर प्रहलाद को लेकर जलती आग पर बैठ गई. लेकिन प्रहलाद की श्रध्दा के आगे होलिका का वरदान फीका पड़ गया और उस आग में प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ लेकिन होलिका जल कर खाक हो गई और तभी से हिन्दू समाज में इस प्रथा का प्रचलन चलता आ रहा हैं.

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