लखनऊ: चुनावों के बीच उत्तर प्रदेश से एक चौंकाने वाली खबर आई है. मायावती के बनाए जिन स्मारकों को कल तक कोई पूछने वाला तक नहीं था, अचानक उन्हें चमकाने-दमकाने का काम शुरु हो गया है. अफसरों के रुख में आए बदलाव को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं.
टूटे-फूटे पड़े हैं पार्क के गेट
अखिलेश राज में बसपा सुप्रीमो मायवती के बनाए स्मारकों को कोई पूछना वाला तक नहीं था. लखनऊ के स्मारकों में करीब 200 गेट लगाए गए थे. इनमें से कई टूट-फूट भी गए थे. यही नहीं ये सुनसान भी नजर आने लगे थे. अखिलेश यादव तो मौका मिलते ही इन पर तंज करने में पीछे नहीं रहते हैं. लेकिन अब एकाएक इनकी मरम्मत और साफ-सफाई का काम शुरु हो गया है.
एक करोड़ का आया है सामान
सूत्रों की मानें तो धुलाई और सिंचाई के लिए करीब एक करोड़ रुपए का साजो-सामान भी खरीदा गया है. यही नहीं, साफ-सफाई पर अफसरों की मुस्तैद नजर भी है. सूत्र बताते हैं कि इस काम को नतीजों के आने से पहले यानी 11 मार्च से पहले पूरा करने का दबाव है. अफसरों के इस रुख को देखते हुए कुछ लोग तो ये भी कहने लगे हैं कि कहीं ये मायावती के आने की आहट तो नहीं. लेकिन अफसरों की मानें तो ये रुटीन काम था. बजट जारी करने में देरी हुई जिसके चलते काम देरी से शुरु हुआ है.
5919 करोड़ हुए थे खर्च
मायावती ने उत्तर प्रदेश में लखनऊ और नोएडा में दो बड़े पार्क बनवाए थे. इनमें उन्होंने अपनी, भीमराव अंबेडकर, कांशीराम और पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां बनवाई थीं. लखनऊ विकास प्राधिकरण की रिपोर्ट के मुताबिक इन पर सरकारी खजाने से कुल पांच हजार नौ सौ उन्नीस करोड़ रुपए खर्च किए गए थे. इसी रिपोर्ट के मुताबिक पार्कों और मूर्तियों के रखरखाव के लिए पांच हजार छह सौ चौंतीस कर्मचारी बहाल किए गए थे. साल 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव राज्य के नए मुख्यमंत्री बने. उन्होंने मायावती पर 40 हजार करोड़ के मूर्ति घोटाले का आरोप लगाया. मायावती ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया था.
अंदर की बात
अंदर की बात ये है कि यूपी में मायावती की सरकार ने जो पार्क और स्मारक बनवाया था, उनकी देख-रेख के लिए हर साल करोड़ों का बजट आवंटित होता है. चूंकि मार्च का महीना शुरू हो गया है और 31 मार्च तक बजट खपाना है, इसलिए अफसरों ने अचानक मायावती सरकार के दौरान बनाए गए स्मारकों को चमकाना शुरू कर दिया. अब यूपी में चुनाव आखिरी दौर में है और तस्वीर साफ नहीं है कि अगली सरकार किसकी बनेगी, लिहाजा ये चर्चा शुरू हो गई कि कहीं ये मायावती के सत्ता में लौटने की आहट तो नहीं है.