नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में ऐसा कम ही देखने और सुनने को मिलता है जहाँ कोर्ट सज़ा बढ़ाने को लेकर स्वयं संज्ञान लेते हुए विचार करता है. लेकिन कर्नाटक के ऑनर किलिंग मामले में ऐसा ही हुआ है.
झूठे शान के लिए 9 महीने की गर्भवती शादीशुदा बेटी की गला काटकर हत्या करने वाले पिता को सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई है. बेटी ने नीची जाति के लड़के से प्रेम विवाह कर लिया था जिससे उसका पिता नाराज़ था. ये मामला कर्नाटक का है जिसमें निचली अदालत ने पिता को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया था, जबकि हाई कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या के जुर्म में 10 साल की सजा सुनाई थी.
सजा के खिलाफ पिता ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्त की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे नोटिस जारी कर पूछा था क्यों न उसकी सजा बढ़ा दी जाये.
सजा बढ़ाने का नोटिस पाते ही अभियुक्त डोडा ने कोर्ट से अपनी याचिका वापस लेने की गुहार लगाई ताकि मामला ही ख़त्म हो जाये और सजा न बढ़े लेकिन कोर्ट ने इसकी इजाज़त नहीं दी. कोर्ट ने न सिर्फ उसकी अपील को ख़ारिज किया बल्कि गर्भवती बेटी की हत्या का दोषी मानते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई. कोर्ट ने लड़की की सास और अन्य गवाहों के बयान के आधार पर दोषी को उम्र कैद की सजा सुनाई है.
क्या है मामला?
लिंगायत समुदाय के अभियुक्त डोडा की बेटी ने नाइक समाज के लड़के से 2002 में प्रेम विवाह कर लिया था. 2003 में शादी रजिस्टर्ड करा लिया. जिसपर पिता ने नाराजगी जाहिर की थी. लड़की ससुराल में रह रही थी. पिता ने कहा लडक़ी ने नीची जाति में शादी की है ऐसे में वो अपनी लड़की को मार देगा.
3 अक्टूबर 2003 की है जब लड़की अपने घर के नजदीक पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल जा रही थी तभी पिता ने उसकी हत्या कर दी थी. निचली अदालत ने सबूत न होने की वजह से संदेह का लाभ देते हुए पिता को बरी कर दिया था लेकिन हाई कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या का दोषी माना था.