नई दिल्ली: महाशिवरात्रि हिंदूओं का एक बहुत बड़ा पर्व है. ऐसा माना जाता है कि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि शुभ होती है. इसलिए इसे शिवरात्रि ना कहकर ‘महाशिवरात्रि’ कहा जाता है. इस साल 24 फरवरी को यह त्योहार मनाया जाएगा.महाशिवरात्रि के इस मौके पर आपको बताते हैं पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन विधियों के बारें में….
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त-
निशिथ काल पूजा- 24:08 से 24:59 तक
पारण का समय- 06:54 से 15:24 (25 फरवरी)
चतुर्दशी तिथि आरंभ- 21:38 (24 फरवरी)
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 21:20 (25 फरवरी)
महाशिवरात्रि को किसी भी अन्य त्योहार, व्रत एवं विधान से बढ़कर माना गया है. यह पर्व देश का सबसे बड़ा है और इस दिन किए गए व्रत एवं धार्मिक कार्य से आपके सारे काम जरूर सफल होंगे.
कुंवारी कन्याओं के लिए
महाशिवरात्रि का दिन सबसे पहले उन कन्याओं के लिए अहम माना जाता है जिनकी शादी नहीं हुई होती है. महाशिवरात्रि भगवान शिव एवं माता पार्वती के विवाह का दिन है, इसलिए शादी से जुड़ी सभी इच्छाओं को पूरा करने के लिए यह दिन शुभ माना जाता है.
विवाह ना हो रहा तो-
यदि किसी वजह से किसी लड़की की शादी न हो पा रही हो तो उसे महाशिवरात्रि का व्रत करना चाहिए. इस दिन व्रती को फल, पुष्प, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप, दीप से चारों प्रहर की पूजा करनी चाहिए.
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मंत्र जाप करें-
जो लोग व्रत रहते हैं उनको दूध, दही, घी, शहद और चीनी से अलग-अलग तथा सबको मिलाकर पंचामृत से शिव स्नान कराकर जल से अभिषेक करना चाहिए. चारों प्रहर के पूजन में शिव पंचाक्षर “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए. भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्ग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से भगवान शिव को पुष्प अर्पित करें और उनकी आरती उतारकर परिक्रमा करें.
इच्छानुसार वरदान चाहते हैं तो-
अगर आप भगवान शिव से मन मुताबिक वरदान चाहते हैं तो शिवरात्रि की पूजा के दौरान इस मंत्र का सही उच्चारण सहित जाप करें जो इस तरह से है- ‘ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमव ह्रीं ऐं ॐ’
घर में सुख-शांति के लिए-
घर में सुख-शांति के लिए महिलाएं भोले शंकर से वरदान मांगना चाहती हैं तो भगवान शिव की पूजा करते समय दूध की धारा से अभिषेक करें. इसके साथ दिए गए मंत्र का उच्चारण जरूर करें – ‘ॐ ह्रीं नम: शिवाय ह्रीं ॐ’
कन्या की शादी के लिए-
अगर किसी लड़की की शादी में नहीं हो पा रही हो तो उसे इस शिव मंत्र के साथ माता पार्वती की भी इस मंत्र का जाप करना चाहिए – ‘हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकरप्रिया’