चिरांग : हमारे देश में खलों और खिलाड़ियों की असल स्थिति तब सामने आते हैं जब असम के चिरांग जिले की रहने वाली तीरअंदाज बुली बासुमैत्री जैसे मामले सामने आते हैं. राष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी में गोल्ड मेडल जीतने वाली बुली बासुमैत्री को हाईवे पर संतरे बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा.
बुली कहती हैं, ‘मैंने कई मेडल जीते हैं, मैंने असम पुलिस में नौकरी के लिए कई बार आवेदन किया लेकिन मुझे नौकरी नहीं मिली. मैं पिछले तीन सालों से संतरे बचे रही हूं’.
ये राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी जूनियर और सीनियर स्तर पर मेडल जीत चुकी हैं. बुली को भारतीय खेल प्राधिकरण से प्रशिक्षण प्राप्त है और नेशनल सब जूनियर आर्चरी चैंपियनशिप में दो गोल्ड मेडल और एक सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं. वह 50 मीटर की नेशनल सीनियर आर्चरी चैंपनियशिप में गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं.
बनाया गया राज्य कोच
इस उपलब्धि के बावजूद भी बुली बासुमैत्री को संतरे बेचने पर मजबूर होना पड़ा था. हालांकि, बुली की खबर मीडिया में आने के आद 8 फरवरी को असम के खेल मंत्री नाबा कुमार डोले ने उन्हें मिलने बुलाया था. वहां बुली को राज्य कोच के तौर पर नौकरी की पेशकश की गई है.
खेल मंत्री ने कहा था कि उन्होंने बुली से वादा किया है और अगले हफ्ते तक उसे अप्वाइंटमेंट लैटर मिल जाएगा. बुली को साल 2010 में चोट लगने के कारण तीरंदाजी छोड़नी पड़ी थी. वो कहती हैं कि अब नौकरी मिलने के बाद उन्हें संतरे नहीं बेचने पड़ेंगे. 28 साल की बुली दो छोटी बच्चियों की मां हैं. वह अपनी बेटियों को भी तरींदाज बनाना चाहती हैं.