लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव-2017 के पहले चरण का मतदान 11 फरवरी को होगा. इस चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 71 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे. जिसमें मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली, आगरा और अलीगढ़ मंडल में वोटिंग की होगी.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां पर सबको मात दे दी थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी सीटों पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया था. लेकिन विधानसभा चुनाव में हालात बीजेपी के पक्ष में जाते नहीं दिखाई दे रहे हैं. दरअसल इसके पीछे कई वजहे भी हैं.
1- पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इन सीटों पर बसपा इस बार कड़ी टक्कर दे रही है. कई जगहों पर सपा-बसपा के बीच सीधी लड़ाई है. आश्चचर्य न होगा कि अगर बीजेपी यहां आरएलडी के साथ तीसरे और चौथे की नबंर की लड़ाई लड़ रही हो.
2- बीजेपी को इस नुकसान की वजह इस बार उसके खुद के वोट बैंक ब्राह्णण, बनिया और जाटों की नाराजगी हो सकती है. इसमें जाट वोट बैंक का तो बीजेपी से पूरी तरह मोहभंग होता दिखाई दे रहा है.
3- इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण जैसी बात नहीं दिखाई दे रही है. इलाके में पूरी तरह से शांति छाई है. हालांकि बीच-बीच में नेताओं की बयानबाजी आती रहती है लेकिन उसका कुछ असर नहीं होता नहीं दिखाई दे रहा है.
4- कांग्रेस-सपा के गठबंधन हो जाने से इस बार मुस्लिम मतदाताओं के पास दो ही विकल्प हैं. जिसमें दूसरा बसपा है. ऐसी स्थिति में यह वोटबैंक वहीं जाएगा जो बीजेपी को हरा पाने की स्थिति में होगा.
5- नोटबंदी का असर भी कई जगहों पर है. केंद्र सरकार इस फैसले के बाद होने वाले लाभ को जनता को ठीक से अब तक नहीं समझा पाई है. लोगों को उम्मीद थी कि इसके बाद पीएम मोदी बजट में आम जनता के लिए कोई बड़ी घोषणा करने वाले हैं लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ.
6- सपा-कांग्रेस के गठबंधन ने भी इस बार बीजेपी का सियासी समीकरण बिगाड़ रखा है. दो युवा नेताओं के एक साथ मंच पर आ जाने से रैलियों में अच्छी-खासी भीड़ नजर आ रही है.
7- इन इलाकों में मायावती की रैलियों में भीड़ दिखाई दी है. लोगों का कहना है कि इतनी भीड़ सिर्फ दलित वोट बैंक की नहीं हो सकती है इसमें जरूर ब्राह्णण, बनिया और जाट समुदाय से भी लोग होंगे.
8- दरअसल एक ध्यान देने वाली बात यह भी है कि उत्तर प्रदेश के अब तक जो भी सर्वे हैं उन पर लोकसभा चुनाव के नतीजों का असर जरुर दिखाई दिया है. लेकिन बीते ढाई सालों में राजनीतिक परस्थितियां बदली हैं. कांग्रेस ने सपा का दामन थाम खुद को लड़खड़ाने से थाम लिया है. बसपा ने भी बीते सालों में अपनी ताकत बढ़ाई है और सबसे ज्यादा मुस्लिमों को टिकट दलित-मुस्लिम समीकरण को साधने की कोशिश की है.
इतनी बातें खिलाफ होते हुए भी बीजेपी के पक्ष में एक बात यह जरूर है कि मोदी की रैली में अब भी उतनी ही भीड़ आ रही है जितनी लोकसभा चुनाव में आती है और उस ‘लहर’ में भी सारे मुद्दे शून्य हो गए थे. अगर इस भीड़ ने इस बार 40 प्रतिशत भी बीजेपी का साथ दे दिया तो विरोधियों के समीकरण ध्वस्त होने में देर न लगेगी.