9 दिन तक चला संथारा, गाजे-बाजे के साथ निकली अंतिम यात्रा

राजस्थान के चुरू जिले के तारानगर में 9 दिन तक चले संथारे में रतनी देवी कोठारी ने गुरुवार 2 फरवरी को देह त्याग दिया. जिसके बाद शुक्रवार को बैकुंठी पर उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई.

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9 दिन तक चला संथारा, गाजे-बाजे के साथ निकली अंतिम यात्रा

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  • February 3, 2017 12:07 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
तारानगर: राजस्थान के चुरू जिले के तारानगर में  9 दिन तक चले संथारे में रतनी देवी कोठारी ने गुरुवार 2 फरवरी को देह त्याग दिया. जिसके बाद शुक्रवार को बैकुंठी पर उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई.
 
रतनी देवी के बेटे पारस चंद कोठारी ने बताया कि 94 वर्षीय रतनी देवी ने 25 जनवरी को संथारा (मृत्यु तक उपवास) ग्रहण किया. जिसके बाद घर में संथारा पूरा होने तक जैन मंत्रों और गीतों का उच्चारण लगातार चलता रहा.
 
संथारे की खबर सुनते ही सभी परिचित, रिश्तेदार और समाज के लोग भी उनसे लगातार मिलने पहुंच रहे थे. नौ दिन के संथारे के बाद शुक्रवार को बैकुंठी पर गाजे-बाजे के साथ उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई. जिसमें बड़ी संख्या में समाज के लोगों ने अपनी भागीदारी निभाई.
 
 
 
 
बता दें कि 2015 में राजस्थान हाईकोर्ट ने संथारा पर रोक लगी दी थी. इस फैसले के बाद अपनी इस प्रथा के बचाव में जैन समाज के हजारों लोग सड़कों पर उतर आए थे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जैन समुदाय को बड़ी राहत देते हुए संथारा प्रथा को बैन करने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी.
 
 
क्या है संथारा
जैन धर्म में दो पंथ हैं, श्वेतांबर और दिगंबर. संथारा श्वेतांबरों में प्रचलित है. दिगंबर इस परंपरा को सल्लेखना कहते हैं. इस प्रकिया में व्यक्ति अपनी इच्छा से खाना-पीना त्याग कर देता है. यह स्वेच्छा से देह त्यागने की परंपरा है. जैन धर्म में इसे जीवन की अंतिम साधना माना जाता है.
 
भगवान महावीर के उपदेशानुसार जन्म की तरह मृत्यु को भी उत्सव का रूप दिया जा सकता है. संथारा लेने वाला व्यक्ति भी खुश होकर अपनी अंतिम यात्रा को सफल कर सकेगा, यही सोचकर संथारा लिया जाता है. संथारा ग्रहण करने वाले व्यक्ति की मृत्यु पर शोक नहीं मनाया जाता.
 
परिवार और गुरु की आज्ञा
संथारा में उपवास पानी के साथ और बिना पानी पीए, दोनों तरीकों से हो सकता है. अगर सिर्फ पानी के सहारे संथारा लिया जाता है तो पानी सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले ही पीया जाता है. संथारा लेने से पहले परिवार और गुरु की आज्ञा लेनी जरूरी होती है.
 
जैन धर्म के मुताबिक, जब तक कोई वास्तविक इलाज संभव हो, तो उस इलाज को कराया जाना चाहिए. अगर इलाज संभव ना हो और व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खाना-पीना त्याग कर संथारा लेता है. संथारा के व्रत के बीच में भी व्यक्ति डॉक्टरी सलाह ले सकते हैं. इससे व्रत नहीं टूटता. 
 
गलत भ्रांति
हालांकि ये गलत भ्रांति भी फैली हुई है कि संथारा लेने वाले व्यक्ति का खाना-पीना जबरदस्ती बंद करा दिया जाता है. संथारा ज्यादातर वे बुजुर्ग अपनी इच्छा से लेते हैं जो अपनी पूरी जिंदगी जी चुके होते हैं और मुक्ति की इच्छा रखते हैं. इस प्रक्रिया को किसी भी तरह से दूसरे पर थोपा नहीं जाता है.

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