Mahatma Gandhi Birth Anniversary 2018: जब आत्महत्या करने चले थे गांधीजी, खा लिए थे धतूरे के बीज

Mahatma Gandhi Birth Anniversary 2018: गांधीजी अपने उस रिश्तेदार के साथ आत्महत्या करने का दृढ़ संकल्प कर चुके थे. लेकिन सामने कुछ और परेशानियां थीं. गांधीजी उम्र के उस दौर से गुजर रहे थे, जब तमाम तरफ से बुरे शौक आपको घेरने को आते हैं. अंदर से भी कभी कभी इच्छा होती है, समान उम्र के दोस्तों या रिश्तेदारों का भी दवाब होता है. ऐसे में गांधीजी को अपने एक रिश्तेदार के साथ बीड़ी पीने का शौक लग गया.

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Mahatma Gandhi Birth Anniversary 2018: जब आत्महत्या करने चले थे गांधीजी, खा लिए थे धतूरे के बीज

Aanchal Pandey

  • October 1, 2018 11:38 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली: कितना भी महान या मजबूत व्यक्ति क्यों ना हो, हर व्यक्ति के जीवन में ना जाने कितने पल ऐसे आते हैं, जब उसको आत्महत्या के सिवा कोई रास्ता नहीं सूझता और ऐसे क्षण जीवन के किसी भी पड़ाव पर आ सकते हैं. गांधीजी के जीवन में भी एक बार ऐसा ही क्षण आया, जब उनको लगा कि सारी उम्मीदें खत्म हो गई हैं, और कोई रास्ता नहीं बचा, उनको आत्महत्या कर लेनी चाहिए. ये उसी समय के आस पास की बात है जब उनकी शादी हुई थी, चूंकि उम्र काफी कम थी, और वो पढ़ भी रहे थे, सो शादी के बाद के झगड़ों का इससे कोई लेना देना नहीं था. क्योंकि शादी उस वक्त हुई नहीं थी.

गांधीजी उम्र के उस दौर से गुजर रहे थे, जब तमाम तरफ से बुरे शौक आपको घेरने को आते हैं. अंदर से भी कभी कभी इच्छा होती है, समान उम्र के दोस्तों या रिश्तेदारों का भी दवाब होता है. ऐसे में गांधीजी को अपने एक रिश्तेदार के साथ बीड़ी पीने का शौक लग गया. उनके अपने चाचा तुलसीदास गांधी तो काफी बीड़ी पीते थे. चूंकि उनके चाचा बीड़ी पीकर धुंआ उड़ाते थे, तो उनको भी लगने लगा था कि ऐसे ही धुआं उड़ाया जाए. ऐसा भी नहीं था कि उनको उसकी गंध में मजा आ रहा था या पीने का कोई फायदा दिख रहा था. ऐसे में दोनों को पास बीड़ी खरीदने के तो पैसे थे नहीं, वो चाचाजी के बीड़ी पीकर फेंके गए ठूंठ को बाद मे उठाकर उन्हें ही सुलगाकर पीने लगे थे.

लेकिन एक तो ठूंठ ज्यादा नहीं मिलते थे, दूसरे वो ज्यादा देर चलते नहीं थे. ऐसे में लगा कि इससे काम नहीं चलेगा, कोई दूसरा रास्ता ढूंढना पड़ेगा तो उन्होंने अपने नौकर की ही जेब से पैसे चुराने शुरू कर दिए. एक दो पैसा उसकी जेब से चुराते और बीड़ी खरीद लाते. कुछ हफ्तों का काम तो चल गया, लेकिन उसे संभालकर रखना और छुपा कर पीना दोनों ही काफी मुश्किल था. फिर किसी से पता चला कि किसी पौधे का डंठल सुलगाओ तो बीड़ी जैसा ही मजा देता है, दोनों उसे आजमाने लगे.

गांधीजी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, ‘’पर हमें संतोष नहीं हुआ. अपनी पराधीनता हमें अखरने लगी. हमें दुख इस बात का था बड़ों की आज्ञा के बिना हम कुछ नहीं कर सकते थे. हम ऊब गए और हमने आत्महत्या करने का निश्चय कर लिया.’’ जाहिर सी बात है कि कुछ और बातें हुई होंगी, जिनको लेकर पिताजी ने उन्हें इजाजत नहीं दी होगी, पढ़ते थे सो पास में पैसा होने का तो सवाल ही नहीं था. किशोर मन जो ठान लिया सो ठान लिया. गांधीजी अपने उस रिश्तेदार के साथ आत्महत्या करने का दृढ़ संकल्प कर चुके थे. लेकिन सामने कुछ और परेशानियां थीं.

पहली परेशानी तो ये कि आत्महत्या करें तो करें कैसे? जहर कौन दे, कहां से लाएं? फिर उनको कहीं से पता चला कि धतूरे के बीजों में जहर होता है, उसको खा लो तो मौत हो जाती है. तो वो लोग फौरन जंगल जा पहुंचे और वहां से धतूरे के बीच भी ढूंढ़ कर ले ही आए. तय किया गया कि आत्महत्या शाम को की जाएगी. उससे पहले पूजा पाठ भी तो किया जाना था. सो केदारनाथजी के मंदिर जा पहुंचे, वहां दीपमाला में घी चढ़ाया, दर्शन किए, सर झुकाया और फिर एकांत ढूंढने लगे.

फिर क्या हुआ, ऐसा क्या चमत्कार हुआ कि गांधीजी आत्महत्या नहीं कर पाए, जानिए पूरी कहानी विष्णु शर्मा के साथ इस वीडियो में

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