नई दिल्ली: हमारे देश में परंपरा औऱ पहचान के नाम पर कुछ ज़िद ऐसी होती हैं जो सनक के दायरे से बाहर चली जाती हैं. दरअसल ये एक ऐसी मानसिकता है जो सदियों से अंधविश्वास की ज़जीरों में जकड़ी है और उसके भारी भरकम रुढियां ढोने को मजबूर है.
इन रुढियों और अंधविश्वास को पहचान-परंपरा से जोड़कर लोगों की भावनाओं को ऐसे खड़ा किया जाता है कि व्यवस्था के बड़े से बड़े हाकिम की विरोध के नाम पर ही हवाइयां उड़ जाती हैं.
समूचे तमिलनाडु में जलीकट्टू के नाम पर जो हुआ है उसको समझने की जरुरत है और इसी के जरिए ये जानने की जरुरत है कि विकास की राह पर आगे बढने का दावा करने वाले देश का एक पैर अगर ऐसी जानलेवा जोखिम भरी परंपरा में जकड़ा हो तो वो कितनी तरक्की कर लेगा ?
अदालत से बाहर सड़क पर चल रही इस इस लड़ाई के खिलाफ क्या मजाल की कोई नेता या अभिनेता बोलने की हिम्मत जुटा पाए. सब भीड़ के साथ खड़े हैं. हां कुछ लोग ऐसे हैं जो तरक्कीपसंद हैं, देश को विज्ञान और विकास की राह पर देखना चाहते हैं. वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़े हैं. वे कह रहे हैं कि जलीकट्टू परंपरा नहीं अंधविश्वास है.
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