Pataakha Movie Review: डायरेक्टर और संगीतकार विशाल भारद्वाज की फिल्म पटाखा 28 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. फिल्म में दंगल गर्ल सान्या मल्होत्रा, सुनील ग्रोवर, विजय राज, राधिका मदान, नमित दास जैसे कलाकारों से सजी इस फिल्म में विशाल भारद्वाज अपने बचपन की कई बातों को पटाखा के जरिए उतारा है.
बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. हर बार एक नए सैटअप की तलाश में रहते हैं विशाल भारद्वाज, इस बार उन्होंने अपना बचपन की कई बातों को पटाखा में उतारा है। हालांकि काफी हद तक ओमकारा भी उनके अपने बचपन के माहौल से जुड़ी थी, लेकिन इस बार कहानी में अलग किस्म की मारधाड़ है। दो बहनों की लड़ाई, जिसके जरिए वो भारत और पाकिस्तान की लड़ाई को जोड़ते हैं, और मस्ती मस्ती में देते हैं मैसेज कि इन दोनों का एक ही इलाज है- युद्ध और फिर लम्बी शांति।
यूं तो विशाल ने ‘रंगून’ में भी काफी मेहनत की थी, लेकिन वो लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। ‘पटाखा’ के साथ भी ऐसा ही हो सकता है, लेकिन इस बार रिस्क थोड़ा कम है, रंगून में जितना पैसा पानी की तरह बहाया गया था, चरण सिंह पथिक की इस कहानी ‘दो बहनें’ को बड़े परदे पर ढालने के लिए विशाल ने रंगून के मुकाबले चौथाई पैसा भी खर्च नहीं किया होगा। ना कोई बड़ा स्टार है और ना कोई ऐसा सेटअप जिसमें ज्यादा पैसा खर्च हो। उनकी फिल्म का सबसे बड़ा चेहरा है डा. मशहूर गुलाटी यानी सुनील ग्रोवर। बाकी कलाकारों में लीड रोल में हैं दंगल फेम सान्या मलहोत्रा और राधिका मदान, उसके अलावा विजय राज, सानंद व्रर्मा, नमित दास और अभिषेक दुहन।
कहानी दो बहनों चम्पा (राधिका) और गैंदा (सान्या) की हैं, जिनका पिता खदान का छोटा ठेकेदार है, पैसे से परेशान रहता है। गांव में रहने वाली बिन मां की दोनों किशोर लडकियां यूं तो बड़ी तेज हैं, लेकिन आपस में एक दूसरे की शक्ल उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाती। इधर दोनों की जिंदगी में बॉयफ्रैंड आते हैं, दूसरी तरफ उनके पिता बापू (विजय राज) को खदान के लिए रिश्वत देने के लिए पैसे की जरुरत पड़ती है। गांव का एक अमीर पटेल (सानंद वर्मा) जिसकी शादी नहीं हो रही होती, वो बापू को पैसा देकर उनकी एक बेटी से शादी करने को राजी कर लेता है। लेकिन वो भाग जाती है, दूसरी से शादी करने को तैयार होता है तो वो भी अपने बॉयफ्रेंड के साथ भाग जाती है। जब दोनों अपने अपने बॉयप्रेंड के साथ घर पहुंचती हैं, तो पता चलता है कि दोनों ही भाई थे और दोनों देवरानी जेठानी बन गईं हैं।
अब मुश्किल ये है कि दोनों ही साथ नहीं रहना चाहतीं और अपने अपने सपने यानी टीचर बनने का और डेयरी खोलने का पूरा करना चाहती हैं, जिनमें उनकी मदद करता है डिप्पर (सुनील ग्रोवर)। दरअसल सुनील का रोल फैमिली फ्रेंड का है, जो उनको भगाने से लेकर, आपस में लड़ाने और बाद में दोस्ती करवाने का है। पथिक की कहानी में ये किरदार नहीं था, लेकिन विशाल ने जोडा है।
मूवी का सबसे दिलचस्प हिस्सा है पूरी फिल्म का गांव में सैटअप, काफी देसी किरदार, लड़कियां बीड़ी पीती है, लडके भी देसी हैं। हालांकि विशाल ने गालियों से थोड़ा परहेज किया, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रर्देश के बिजनौर मे जन्मे विशाल ने उस इलाके की बोली अच्छे से किरदारों से बुलवाई है, हम्भे.. चौं रे, जे ना होगौ, मैं ना जाउंगो जैसे तमाम वाक्य। ऐसे में टाइमिंग, डायलॉग्स, दोनों के बीच की कैमिस्ट्री, फनी सिचुएशंस और देसी पटाखे। इंटरवल तक फिल्म काफी मस्त है। खासतौर पर महानगरों में रहे रहे युवाओं को एक अलग दुनियां में ले जाएगी, जिसमें कि दंगल वाले आमिर खान भी नहीं ले जा पाए थे।
इंटरवल के बाद जरुर क्लाइमेक्स की टेंशन विशाल की मूवी में दिखती है, लेकिन एक एक्सपेरीमेंट के जरिए वो मूवी को अंजाम तक पहुंचाते हैं, जो एक रिस्क है। हालांकि रंगून जैसे क्लाइमेक्स से तो बेहतर ही था। विशाल ने दोनों की लड़ाई को भारत पाकिस्तान से कायदे से जोडा है। एक्टिंग के मामले में सान्या, राधिका, विजय राज और सुनील ग्रोवर कतई निराश नहीं करते। तीन गाने तो पसंद आने ही हैं रेखा भारद्वाज की आवाजा में तेरा बलमा गुंडा…, पटाखा और सुखविंदर की आवाज में गली गली में कुल्हड़। कुल मिलाकर एक नई किस्म की मूवी देखने का मूड हो तो जरुर जाएं मजा आएगा, हालांकि आपको सेकंड हाफ में थोड़ी बोर भी कर सकती है।
रेटिंग– ***