सत्ता में बाहुबलियों की भरमार, आखिर अपनी जिम्मेदारी हम कब समझेंगे?

राजनीतिक दलों में आपराधिक छवि के नेताओं की कमी नहीं है. यह संख्या घटने की बजाए बढ़ती ही जा रही है. बाहुबलियों का लश्कर हमे डारते-धमकाते ऐस ही चलता जा रहा है.

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सत्ता में बाहुबलियों की भरमार, आखिर अपनी जिम्मेदारी हम कब समझेंगे?

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  • January 8, 2017 5:54 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली : राजनीतिक दलों में आपराधिक छवि के नेताओं की कमी नहीं है. यह संख्या घटने की बजाए बढ़ती ही जा रही है. बाहुबलियों का लश्कर हमे डारते-धमकाते ऐस ही चलता जा रहा है.  
 
सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतें डांटते-डपटते रहते हैं. कई बार इन नेताओं की दावेदारी पर सवाल उठता है लेकिन फिर कुछ नहीं होता. ऐसा इसलिए क्योंकि हमने ऐसे नेताओं को पाला पोसा है. हम लोग ही उन्हें वोट देते हैं. हम ये बात नहीं समझते लेकिन सरकार, कोर्ट और आयोग हमारे बाद ही आते हैं. 
 
सुप्रीम कोर्ट की कोशिशें नाकाम
यह सच है कि लोकतंत्र में संख्या ही सत्ता तक पहुंचाती है. राजनीतिक दल इस संख्या को पाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. इसके लिए आपराध करने वालों को भी शामिल करने से परहेज नहीं किया जाता. उनके शामिल करने से आता है पैसा और रौब. 
 
सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की तरफ से इस पर लगाम लगाने की कोशिश की है. राजनीतिक दल कहते हैं कि अपराध सबित हो तो चनुाव नहीं लड़ेंगे लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आरोप तय है, तो चुनाव न लड़ें. वहीं, चुनाव आयोग कहता है कि राजनीतिक दल 20 हजार नहीं बल्कि दो हजार से ज्यादा के चंदे का हिसाब जनता को बताएं. 
 
इसके बावजूद भी स्थिति वही है.आज की संसद में हर तीसरा सांसद आपराधिक छवि का है. 543 में से 186 सांसद ऐसे चुने गए हैं जिन पर आपराधिक मामला दर्ज हैं. साल 2009 में 30 फीसदी नेता ऐसे थे, जिनकी संख्या साल 2014 में 34 फीसदी हो गई है. अगर ऐसे लोगों को सत्ता में आने से नहीं रोका गया तो इसकी भरपाई जनता को ही करनी पड़ेगी. आखिर हमारी जिम्मेदारी हम कब समझेंगे? 
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