नई दिल्ली: कभी किसी को कहते सुना है कि सुन ना दोस्त, मेरी बहन को कुछ लड़के छेड़ रहे थे. मैंने कुछ नहीं किया. वो उसके कपड़े फाड़ रहे थे और मैं चुपचाप देखता रहा. वो चीखती रही पर मैंने सब अनसुना कर दिया. फिर वहां से चला गया. रुक ना, मेरे पास वीडियो भी है. भेजता हूं तुझे.
नहीं सुना ना. कैसे सुन सकते हैं. कोई भाई, कोई बेटा, कोई बाप. अपनी बहन, मां या बेटी के साथ बदसलूकी होता चुपचाप देख ही नहीं सकता. लेकिन दूसरे की बहन हो, बेटी हो या मां हो और उसके साथ बदसलूकी हो तो सब चुपचाप देख लेते हैं. कुछ मुंह घुमा कर चल देते हैं. कुछ देखते रहते हैं पर करते कुछ नहीं. और कुछ तो घटना का वीडियो दोस्तों को वॉट्सऐप करते हैं.
31 दिसंबर की रात बेंगलुरू में तमाशबीन भीड़ थी, दिल्ली में भी थी और ऐसी कई जगहों पर थी जहां की खबर या तो रिपोर्ट नहीं हुई या जहां सीसीटीवी कैमरा नहीं था. आज सवाल उन बदतमीज़ आवारा लोगों पर तो है ही लेकिन उस भीड़ पर भी जिसने रत्ती भर की भी गैरत और हिम्मत दिखाई होती तो मनचले वो नहीं कर पाते जो उस रात और वैसी कई रातों को हुआ है.
वीडियो में देखें पूरा शो-