Paltan Movie Review: जेपी दत्ता की फिल्म पलटन आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. जेपी दत्ता की फिल्म पलटन को फिल्म समीक्षकों से 3 स्टार मिले हैं. फिल्म पलटन को देखकर आप डोकलाम के बारे में अच्छे से जान सकते हैं. इसके अलावा फिल्म की कहानी 1967 में हुए भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों के बीच लड़ाई पर आधारित है.
बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. ज्यादातर लोगों को जे पी दत्ता की फिल्में एक जैसी लगती हैं, क्योंकि ज्यादातर वॉर फ़िल्में हैं तो जवानों की असाधारण वीरता और उनके परिवारों से उनकी दूरी से उपजे इमोशन्स पूरी फिल्म को जकड़ लेते हैं. ऐसे में उनको चाहिए कि नई फिल्म को नए कलेवर में लाएं, इस मामले में पलटन में वो उतने कामयाब तो नहीं हो पाए फिर भी रोमांटिक फिल्मों से इतर मूवीज देखने के शौक़ीन लोगों खासकर नौजवानों के लिए ये जरूरी फिल्म है.
जरूरी इसलिए क्योंकि आजादी के बाद देश की एक बड़ी घटना हुई, जिसने भारत का भूगोल बदल दिया, लेकिन नई पीढ़ी अनजान है. उसके बारे में जे पी दत्ता ने बड़े ही खूबसूरत तरीके से बताया है कि एक पल्टन ने हिम्मत न दिखाई होती तो आज सिक्किम भारत में नहीं बल्कि चीन में होता.
1967 में नाथुला दर्रे में भारत ने चीन की सीमा पर जो कंटीली बाड़ लगाई, वो कितनी बड़ी हिम्मत का काम था, कितने सैनिकों ने अपना बलिदान दिया और कैसे एक एक इंच के लिए लड़ती है भारतीय सेना, महानगरों में डाटा और पॉकेट मनी में उलझे युवा के लिए इस फिल्म के जरिये समझना आसान होगा. इस मूवी से आप ये भी समझ सकते हैं कि डोकलाम में क्या हुआ होगा. लेकिन अगर आपको भारत के भूगोल, इतिहास से घंटा फर्क नहीं पड़ता तो ये मूवी आपके लिए नहीं है.
नाथुला दर्रा चुम्बी वैली में है, जो सिक्किम को चीन से अलग करता है. 1975 में भारत में शामिल होने तक सिक्किम की सुरक्षा का जिम्मा भारत की सेना के सर पर था. चीन सिक्किम पर कब्जा करना चाहता था और इसके लिए नाथूला से भारतीय सेना का हटना जरूरी था, इसके लिए वो ऐसी हरकतें करता रहता है, जिससे भारतीय सेना दहशत में आए. जबकि भारतीय सेना 1962 की जंग का बदला लेने को बेताब थी. तब मेजर जनरल सगत सिंह (जैकी श्रॉफ) कर्नल राय सिंह यादव (अर्जुन रामपाल) को एक स्ट्रेटजी के तहत वहां भेजते हैं, डिफेंस के बजाए आक्रामक रहने की पॉलिसी के तहत, और कंटीले तारों की बाड़ से सीमा का मामला हमेशा के लिए फिक्स करने की खातिर.
जिसमें मेजर बिशन सिंह (सोनू सूद), पृथ्वी सिंह डागर (गुरूमीत चौधरी), मेजर हरभजन सिंह (हर्षबर्धन राणे), सिद्धांत कपूर और लव सिन्हा जैसे अधिकारी प्रमुख भूमिका निभाते हैं. आखिरकार वो उसी तरह कामयाब हो जाते हैं, जैसे परमाणु फिल्म में अमेरिका सेटेलाइट को धता बताकर भारत ने परमाणु परीक्षण कर लिए थे.
सो कहानी वाकई में जानने लायक है, और इस मामले में नई है कि डोकलाम में जो हुआ, यानी बिना गोली चलाए सालों तक आपस में कुछ फुट दूरी पर एक दूसरे से भिड़ते रहना और चीन सं भिडंत और खासतौर पर जीत नई है. लेकिन चूंकि कोई आज के दौर का सुपर स्टार नहीं है, म्यूजिक पर अनु मलिक ने काफी मेहनत की है, दिखी भी है, टाइटिल सोंग अच्छा बन पड़ा है, लेकिन बॉर्डर की तरह सुपरहिट नहीं हुआ है. सैनिकों की प्रेमिकाओं, बीवी के रोल में ईशा गुप्ता, सोनल चौहन और दीपिका कक्कड़ हैं, लेकिन वो ज्यादा असर नहीं छोड़ पाया. हालांकि एक्टिंग के मामले में हर्षवर्धन राणे, गुरुमीत चौधरी और लव सिन्हा अपना असर छोड़ने में कामयाब रहते हैं.
फिऱ भी कुछ एक सींस छोड़ दिए जाएं तो फिल्म आपको बांधे रखती है, बल्कि पहले सीन से ही खासतौर पर जबकि आप कुछ नया जानने के मूड से गए हों, खुद को एंटरटेन करने नहीं. तो ये तय है कि फिल्म बॉर्डर जैसी कामयाबी तो हासिल नहीं करेगी, लेकिन जिस तरह से लोगों को ‘गाजी’ देखकर एक नई कहानी पता चली थी, वैसे ही भारत के युद्ध इतिहास की वो कहानी पता चलेगी, जिसने सिक्किम के भारत विलय में काफी बड़ा रोल अदा किया था.
वीडियो से जानिए कैसी है पलटन:
https://youtu.be/4qspiginsaU