वाराणसी : आज नोटबंदी का 45वां दिन है और प्रधानमंत्री मोदी से लेकर वित्तमंत्री अरुण जेटली तक बार-बार यह दोहरा चुके हैं कि कैश की किल्लत धीरे-धीरे खत्म हो रही है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है.
दरअसल अभी भी बड़ी संख्या में लोग लाइनों में लगे हैं और कैश के लिए कष्ट उठा रहे हैं. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए गांव में लोगों की हालत बेहद ख़राब है. इसी साल मार्च में प्रधानमंत्री ने वाराणसी के गांव नागेपुर को गोद लेने की घोषणा की थी.
इसके बाद से नागेपुर गांव के लोगों का ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था. गांव वालों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री के गांव को गोद ले लेने से वहां के हालात सुधरेंगे लेकिन ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है. गुरुवार को खुद प्रधानमंत्री मोदी वाराणसी में मौजूद थे लेकिन नागेपुर गांव का लगभग हर शख्स गांव के बैंक में धक्के खा रहा था या काम की तलाश कर रहा था.
नोटबंदी के बाद से गांव वालों को काम की तलाश करने में खासा परेशानी हो रही है. यह परेशानी इसलिए भी ज्यादा हो गयी है क्योंकि मुश्किल में काम आने के लिए बचाया गया उनका पैसा किसी काम नहीं आ पा रहा है. मोदी के वाराणसी पहुंचने पर उनके गोद लिए गांव के बैंक में पैसे पहुंचे. उससे पहले वहां 2000 रूपये ही मिल पा रहे थे. जिसकी वजह से लोगों को छुट्टे की समस्या का भी सामना करना पड़ रहा था.
इन तमाम समस्याओं से लोग इनते त्रस्त हैं कि यह कहने से भी नहीं चूक रहे कि प्रधानमंत्री जी अपने गोद लिए गांव के हालात से अनजान है. गांव की बैंकिंग व्यवस्था को समझने की कोशिश करें तो पता चलता है कि तीन हज़ार की आबादी और 425 परिवारों वाले इस गांव में एक भी एटीएम अभी नहीं है, जबकि हर परिवार में किसी एक व्यक्ति का खाता बैंक में जरूर है. ऐसे में नोटबंदी के बाद गांववालों का रोना गलत भी नहीं है.