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Atal Bihari Vajpayee Memories: जब इस्तीफा देने जा रहे मनमोहन सिंह को मनाकर लाए थे अटल बिहारी वाजपेयी

Atal Bihari Vajpayee Memories: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का गुरुवार को निधन हो गया. आज उन्हें एक बेहतरीन नेता के तौर पर देशभर में याद किया जा रहा है. उनमें वो योग्यता था कि नरसिम्हा राव ने भारतीय दल का प्रतिनित्व करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी को जेनेवा भेज दिया था. जबकि वे विपक्ष में थे.

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Atal Bihari Vajpayee Manmohan Singh
  • August 16, 2018 8:28 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का गुरुवार को दिल्ली के एम्स में निधन हो गया. वह 93 साल के थे. उन्होंने शाम 5 बजकर 5 मिनट पर अंतिम सांसें लीं. अटल बिहारी वाजपेयी को एक बेहतरीन राजनेता के तौर पर जाना जाता है जो कि विपक्ष का सम्मान करने को भी पूरी अहमियत देते थे. इतना ही नहीं, विपक्ष में रहते हुए भी वे सत्तापक्ष की सराहना कर देते थे. यह कहना गलत नहीं होगा कि वे नेगेटिविटी की भावना से दूर थे. अगर उन्हें अपने प्रतिद्वंदियों की कोई बात अच्छी लगती थी तो वे संसद में भी तारीफ करने से नहीं चूकते थे.

अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा और राजीव गांधी की तारीफ में कोई कंजूसी नहीं की. नरसिम्हा राव से उनके अच्छे रिश्ते थे. राजनीतिक जगत उनके साथ बिताए पल या उनके जीवन में घटी घटनाओं को शेयर कर रहा है. पूर्व पीएम के जीवन की एक काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह है उनका मनमोहन सिंह को मनाना.

दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को राजनीति में लाने का श्रेय पीवी नरसिम्हा राव को जाता है लेकिन राजनीति के दांवपेच से रूबरू कराने में अटल बिहारी वाजपेयी का अहम योगदान माना जाता है. मामला उस दौर का है जब नरसिम्हा राव की कैबिनेट में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे. बतौर वित्तमंत्री मनमोहन सिंह को विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ से काफी तीके सियासी प्रहार झेलने पड़ते थे. इस दौरान विपक्ष की तरफ से उनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि वे खुद को अपमानित समझने लगे और वित्तमंत्री पद से इस्तीफे का इरादा बना लिया.

मनमोहन सिंह की नाराजगी की बात सुनकर नरसिम्हा राव खुद वाजपेयी के पास पहुंचे. वहां उन्होंने वाजपेयी से मनमोहन सिंह को मनाने के लिए कहा. इस पर अटल भी मान गए और मनमोहन सिंह से मिले और उन्हें समझाया. उन्होंने मनमोहन सिंह को समझाया कि इन आलोचनाओं को वे खुद पर न लें, वे विपक्षी नेता होने के नाते सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं, पर्सनली नहीं. इसके बाद मनमोहन सिंह भी धीर गंभीर हो गए और आलोचनाओं पर भी चुप रहे.

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