Gold Review : ना कोच ना खिलाड़ी का रोल, अक्षय कुमार जीत पाएंगे बॉक्स ऑफिस पर गोल्ड?

Gold Review : अक्षय कुमार और मौनी रॉय की फिल्म गोल्ड ने आज यानी 15 अगस्त को सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है. फिल्म में अक्षय कुमार का दमदार रोल देखने को मिल रहा है साथ ही देशभक्ति से भरपूर इस फिल्म ने पहला दिन अच्छी शुरुआत की है. अगर आप भी गोल्ड देखने का मूड बना रहे हैं तो पहले फिल्म का रिव्यू जरूर पढ़ लें.

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Gold Review : ना कोच ना खिलाड़ी का रोल, अक्षय कुमार जीत पाएंगे बॉक्स ऑफिस पर गोल्ड?

Aanchal Pandey

  • August 15, 2018 2:25 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

बॉलीवुड डेस्क, दिल्ली.  अक्षय कुमार ने अपनी फिल्म गोल्ड में ना तो चक दे इंडिया के शाहरुख की तरह कोच का रोल किया है और ना ही सूरमा के संदीप सिंह जैसे किसी हॉकी प्लेयर का, ऐसे में उनके रोल को हीरो बनाना काफी मुश्किल था लेकिन रीमा कागती ने वो कर दिखाया, आपको देखकर लगेगा भी कि अक्षय से बेहतर किसी के लिए भी करना इसे मुश्किल था. इस फिल्म की रिलीज करने की टाइमिंग भी काफी शानदार है, एक तरफ 1948 के ओलम्पिक हॉकी गोल्ड की जीत के पचास साल पूरे हुए हैं, दूसरी तरफ 15 अगस्त का खुमार, पूरे सिनेमा हॉल का क्रालाइमेक्स में राष्ट्र गान की धुन पर खड़े हो जाना, वाकई में अक्षय की गोल्ड जीत जैसा है.

कहानी यूं तो सबको पता चल ही गई है, लेकिन इस विनिंग टीम के दो खिलाडियों को उत्तर भारत के खेल प्रेमी पहचानते हैं. यूपी के बाबू केडी सिंह जिनके नाम पर लखनऊ में हॉकी स्टेडियम है और सीनियर बलवीर सिंह जो आज भी जिंदा हैं. कहानी शुरू होती है 1936 के ओलम्पिक हॉकी फायनल से, जिसे तीसरी बार भारत जीतता है. खिलाडियों के नाम बदल दिए गए हैं इस फिल्म में और कई मैचों के फैक्ट्स भी, शायद ड्रामा के लिए ये जरुरी भी था. ध्यानचंद का नाम सम्राट कर दिया गया है, केडी सिंह का रघुवीर प्रताप सिंह और बलवीर सिंह का हिम्मत सिंह.

दूसरे वर्ल्ड वॉर के चलते उसके बाद 12 साल तक ओलम्पिक नहीं होते और ब्रिटिश इंडियास की टीम बिखर जाती है। कहानी के नायक के तौर पर हॉकी टीम के असिस्टेंट मैनेजर तपन दास के रोल में हैं अक्षय कुमार. 1946 में जब ये खबर आती है कि 1948 में फिर से ओलम्पिक लंदन में होंगे, तो तपन दास फिर से हॉकी इंड़िया फेडरेशन के साथ मिलकर टीम तैयार करने में जुट जाता है, लेकिन देश का विभाजन होते ही टीम के कैप्टन और वाइस कैप्टन दोनों पाकिस्तान चले जाते हैं. स्पोर्ट्स पर बनी फिल्मों के लिए ये जरुरी होता है कि जितनी ज्यादा मुश्किलें दिखाई जाएं, उतनी जीत क्लाइमेक्स में अच्छी लगती है. पैसे की तंगी, फेडरेशन का भरोसा, टीम में आपसी मनमुटाव, देश का विभाजन होना, ओलम्पिक इंगलैंड में होना जो अब तक राज करता था और साधनों की कमी. आखिरकार भारत इंगलैंड को उसी की धरती पर फायनल मैच हराकर गोल्ड जीत लेता है, तपन दास को टीम को खडा करने का क्रेडिट जाता है, कोच के तौर पर 1936 के कैप्टन सम्राट के रोल में कुणाल कपूर हैं.

खास बात ये है कि रीमा कागती ने जावेद अख्तर के डायलॉग्स के सहारे उतार चढ़ावों, निराशा और जोश के साथ साथ बाकी एक्टर्स का अक्षय कुमार के साथ कॉम्बीनेशन अच्छा बनाए रखा. किसी को भी ये शिकायत नहीं होगी कि उनका रोल छोटा था। चाहे वो विनीत सिंह हों, कुणाल कपूर, अमित साद या फिर सनी कौशल, मौनी राय को भी पर्याप्त मौका मिला. हालांकि टीम को ज्यादा परेशानियों में दिखाने के लिए जरूरत से ज्यादा आर्थिक परेशानियां दिखाई गईं, सरकार का कोई रोल ही नहीं था। जबकि रघुवीर सिंह खुद काफी पैसे वाला दिखाया गया है, जो काफी दानी भी है, लेकिन टीम की मदद के लिए वो एक बार नहीं पूछता, एक बॉद्ध मठ उनकी मदद करता है.

बावजूद इसके फिल्म बेहतरीन है, उस दौर का भारत ही नहीं विश्व दिखाना, उस दौर की बिल्डिंग्स, गैटअप, मार्केट, सैट और बोली आदि पर मेहनत हुई है. अक्षय कुमार और मौनी रॉय अपने बंगाली किरदारों में घुस गए हैं. उसी तरह अक्षय कुमार के होते हुए भी बाकी किरदारों को पर्याप्त स्पेस भी मिला और उन्होंने खुद को साबित भी किया. ये अलग बात है कि असली टीम के नतीजों में काफी बदलाव किए गए हैं. बलवीर सिंह को केवल फायनल में खेलते दिखाया गया, जबकि एक लीग मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्होंने 6 गोल दागे थे. फायनल को जानबूझकर रोमांचित करने के लिए इंगलैंड के तीन गोल करवा दिए, हकीकत में भारत ने उसे 4-0 से रौंद दिया था। हां बारिश उस मैच में भी हुई थी। ये भी तय नहीं है कि उस वक्त गोल्ड मिलने पर भारत का कौन सा राष्ट्र गान बजा था- वंदेमातरम या जन गण मन क्योंकि 1948 में तो राष्ट्रगान तय ही नहीं हुआ था, वो तो संविधान सभा में 24 जनवरी 1950 को हुआ था, लेकिन गोल्ड मूवी में जन गण मन की धुन बजाई गई.

कुल मिलाकर आप इस वीक या वीकेंड में गोल्ड देखकर आ सकते हैं, आजादी के जश्न में परिवार के साथ इमोशंस और जोश दोनों से सराबोर हो सकते हैं. दलेर मंहदी की आवाज में घर लाएंगे गोल्ड, और विशाल ददलानी की आवाज में चढ़ गई है और मोना बीना जैसे गाने पहले ही हिट हो चुके हैं, ज्यादातर गानोें में म्यूजिक सचिन जिगर का है. सो फिल्म पूरी तरह से परिवार के साथ देखने का कम्पलीट पैकेज है.

रेटिंग–4 स्टार

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