Satyameva Jayate Movie Review: जॉन अब्राहम का एक्शन और मनोज बाजपेयी की जबरदस्त एक्टिंग सत्यमेव जयते में देखने को मिल रहा है. साथ ही फिल्म में पीएम मोदी के डायलॉग भी सुनने को मिल रहे है.
फिल्म: सत्यमेव जयते
निर्देशक: मिलाप जवेरी
स्टार कास्ट: जॉन अब्राहम, मनोज बाजपेयी, नोरा फतेही, अमृता खनविलकर
रेटिंग: 2.5 स्टार
बॉलीवुड डेस्क, दिल्ली. Satyameva Jayate Movie Review: सत्यमेव जयते इस फिल्म में एक सीक्रेट कोड है, जो इतनी जल्दी और गलत तरीके से खुल जाता है कि दर्शक उसके बाद बार बार सोचने लगते हैं कि डायरेक्टर इतना ओवर इंटेलिजेन्ट क्यों है. मोदी के नारों को भी उसने फिल्म के डायलॉग्स में इस तरह समाहित किया है कि वो हर 15 मिनट पर आ जाते हैं. सत्यमेव जयते आपको अमिताभ बच्चन की 2 फिल्मों ‘शहंशाह’ और ‘दीवार’ का कोम्बो लगेगी. सबसे बड़ी बात ये है कि सब कुछ इसमें ‘एक्सटेम्पोर’ है, जो मस्ती, ग्रैंड मस्ती, क्या कूल है हम जैसे कॉमेडी और शूट आउट एट वडाला व एक विलेन जैसे फिल्में देने वाले डायरेक्टर मिलान झावेरी की खासियत भी है.
कहानी शहंशाह की तरह की है, जब इंस्पेक्टर पिता को रिश्वतखोरी के झूठे इल्जाम में फंसाकर आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया जाता है तो बेटा वीर (जॉन) सारे रिश्वत खोरों को सबक सिखाने रात में निकल पड़ता है, शहंशाह की तरह. लेकिन बड़े ही बीभत्स तरीके से, पुलिस वालों को जिंदा जलाकर. पहला सीन ही आपको स्क्रीन से बांध देता है, फिर एक के बाद एक पुलिस वालों की हत्याएं और वो भी जिन्दा जलाकर. डीसीपी शिवान्स राठौर (मनोज वाजपेयी) के लिए इस व्यक्ति को पकड़ना काफी मुश्किल लगता है, इंटरवल के बाद कहानी शहंशाह से दीवार में बदल जाती है. सबसे बड़ी बात है कि हर सीन या घटना एक्सटेम्पोर है, आपको लगेगा ‘ऐसे कौन करता है भाई’.
हर 15 मिनट पर एक डायलॉग या सीन आएगा जिससे आपको मोदी की याद आएगी, नोट बदल गए नीयत नहीं बदली, गोली मारने के लिए 56 इंच का जिगरा चाहिए, आपके तो सच में अच्छे दिन आ गए, पेट्रोल के दाम और दामले दोनों ऊपर गए, स्वच्छता अभियान चला रहे हो और अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव में गुजरात के विधायकों को बैंगलोर रिसोर्ट में पहुंचने का सीन भी.
फिल्म में इमोशन्स का ज्यादा इस्तेमाल है, सो दिमाग घर पर रख जाईये. बीच सड़क पर आदमी की चिता सजाने से लेकर उसकी राख़ बटोरने तक कोई डिस्टर्ब नहीं करता, पेट्रोल दाम वाला डायलॉग डालने के लिए पुलिसवाला दामले होता है और पूरा पेट्रॉल पंप जॉन का, पुलिसवाला खुद ही सुसाइड के लिए उतावला क्यों था, जरूर्री जगहों पर सीसीटीवी क्यों नहीं, हर पुलिसवाला कुत्ते की तरह वहशी दिखाया है। हर सीन कुछ अलग करना था, सो गणपति के बजाय मुहर्रम के जुलुस में हत्या होती है।
चूंकि मूवी जॉन की थी, सो आएशा के लिए एक्टिंग का स्कोप नहीं था, मनोज हमेशा की तरह हैं। 2 गाने बेहतरीन हैं। मूवी आपको 80 के दशक में मॉडर्न तड़का लगेगी, काफी थ्रिल है, लेकिन लॉजिक नहीं, बस टाइम पास ही है.