Dhadak Review: जाह्नवी कपूर और ईशान खट्टर की फिल्म धड़क को डॉन के रीमेक से लेना था सबक

Dhadak Movie Review: जाह्नवी कपूर और ईशान खट्टर की फिल्म धड़क रिलीज हो चुकी है. फिल्म करण जौहर के बैनर तले शंशाक खेतान ने बनाई है. फिल्म सौराट के मुकाबले बॉक्स ऑफिस पर खरी उतरती नजर नहीं आ रही है. फिल्म में कुछ भी सरप्राइजिंग एलीमेंट नहीं हैं. लेकिन फिल्म में जाह्नवी और ईशान ने काफी अच्छी एक्टिंग की है.

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Dhadak Review: जाह्नवी कपूर और ईशान खट्टर की फिल्म धड़क को डॉन के रीमेक से लेना था सबक

Aanchal Pandey

  • July 20, 2018 11:06 am Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

फिल्म- धड़क
स्टार कास्ट- जाह्नवी कपूर, ईशान खट्टर, आशुतोष राणा
स्टार-2.5
डायरेक्टर- शंशाक खेतान
बॉलीवुड डेस्क, मुंबई. जब आप किसी फिल्म का ऑफीशियल रीमेक बनाने जा रहे हैं, और वो भी किसी सुपरहिट फिल्म का तो जाहिर है ऑडियंस को कुछ सरप्राइजिंग एलीमेंट की जरुरत होती है, बिलकुल फरहान अख्तर के डॉन के रीमेक की तरह. जिसमें आखिर में पता चलता है कि जिसे आप हीरो समझ रहे थे, वो तो विलेन था. लेकिन ‘सैराट’ को सीन दर सीन कॉपी करने, श्रीदेवी की बेटी को लांच करने और किरदारों का स्टेट्स थोड़ा बढ़ा देने भर से ये होने वाला नहीं था. एक तो सैराट का क्लाइमेक्स ही काफी शॉकिंग था, उसमें बेतुका नाटकीय बदलाव लाकर जाह्नवी को एक्टिंग के लिए एक और एक्स्ट्रा सीन देना ही काफी नहीं था. इस फिल्म को आप केवल जाह्नवी कपूर के लिए देख सकते हैं, ईशान के फैंस भी निराश नहीं होंगे.

पहले बात कर लेते हैं कहानी की, मराठी फिल्म ‘सैराट’ की ही कहानी है, दो लाइन की कहानी. महाराष्ट्र के किसी कस्बे की बजाय राजस्थान के खूबसूरत शहर उदयपुर के के दोनों परिवार हैं. सिनेमेटोग्राफर ने बड़े ही करीने से उदयपुर शहर की खूबसूरती, ऐतिहासिक इमारतों, झीलों और गलियों को अपने कैमरे में कैद किया है. पार्थवी (जाह्नवी) राजघराने के एक ऐसे व्यक्ति रतन सिंह राठौर (आशुतोष राणा) की बेटी है, जो ताजा ताजा राजनीति में उतरा है और साम दाम दंड भेद से एमएलए बनना चाहता है. तो मधुकर (ईशान खट्टर) एक छोटा रेस्तरां चलाने वाले व्यक्ति का बेटा है, दोनों एक ही क्लास में पढ़ते हैं औऱ प्यार हो जाता है. रतन सिंह को पता चलता है, लेकिन वो चुनाव के नतीजों तक शांत रहता है, लेकिन जीतने के बाद गरीब और छोटी जाति का होने के चलते वो पुलिस से मधुकर को उठवा लेता है. वहां से पार्थवी उसे पिस्तौल की नौक पर छुड़ाकर भाग जाती है और फिर दोनों कोलकाता में घर बसा लेते हैं, थोड़ी परेशानियों के बाद ग्रहस्थी चल जाती है, एक बेटा हो जाता है. पार्थवी लगातार अपनी मां के सम्पर्क में रहती है और एक दिन पिता रतन सिंह को पता चल जाता है. उसके बाद कहानी का क्लाइमेक्स एक सामाजिक बुराई के खिलाफ संदेश के साथ खत्म हो जाता है.

यूं कहानी बोरिंग सी लगेगी, लेकिन हाल ही में ‘बद्रीनाथ की दुल्हनियां’ जैसी सुपरहिट दे चुके डायरेक्टर शशांक खेतान ने पहले हाफ तक उन्हीं सब छेडछाड़, रोमांस और मस्ती में फिल्म अच्छे से फिल्माई है, आपको मजा आएगा. सैराट से दो गाने भी लिए गए हैं, जिसमें से झिंग झिंग झिंगाट अच्छा बन पड़ा है. लेकिन जैसे ही दोनों घर से भागते हैं, उसके बाद कहानी में से वो मस्ती गायब हो जाती है और फिल्म नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी और अमोल पालेकर टाइप की फिल्मों जैसी कोलकाता की चॉल में रोजमर्रा की जरुरतों और परेशानियों में फंस जाती हैं, उसके किरदारों की तरह. उस पर क्लाइमेक्स काफी शॉकिंग हैं, जो धड़क में भी बरकरार रखा गया है. यूं सामाजिक संदेश है, लेकिन एंटरटेनमेंट के मकसद से गए लोगों को शायद पसंद ना आए.

डायरेक्टर ने सीन दर सीन कॉपी किया है सैराट से, पहला सीन भी वही है और आखिरी सीन भी. बदलाव ये हैं, सैराट में हीरो का जो दोस्त लंगड़ा था, इसमें टिंगू है. सैराट में मामा का कोई किरदार नहीं था, इसमें आखिर में हैल्प हीरो का मामा करता है. शहर भी बदल दिए गए हैं. सैराट में हीरो का पिता मछली पकड़ता था, इसमें रेस्तरां चलाता है. सैराट में हीरो क्रिकेट मैच जीतता है, इसमें ज्यादा खाने की प्रतियोगिता जीतता है. क्लाइमेक्स में भी एक छोटा सा बदलाव किया गया है, लेकिन उसमें टेक्नीकल खामियां हैं. जब किसी महिला का भाई सालों बाद उसके घर आता है तो मिठाई का डब्बा लाता ही है, अगर नहीं लाया तो भाई और पति के घर में होते वो महिला मिठाई खरीदने बाहर नहीं जाएगी. लेकिन ये बिना लॉजिक का सीन धड़क के क्लाइमेक्स को कमजोर कर देता है.

हालांकि एक्टिंग के मामले में जाह्नवी कमजोर नहीं पड़ी हैं. पहली फिल्म के देखते हुए वो उम्मीद जगाती हैं, उन्हें रोमांटिक से लेकर इमोशनल तक सींस करने को मिले हैं और वो खरी उतरी हैं. हालांकि उनकी मां की आवाज चुलबुली थी, तो उनकी आवाज थोड़ी दमदार है, आपको पसंद आएगी. ईशान और जाह्नवी दोनों ही काफी मासूम भी लगे हैं. ईशान माजिद मजीदी की फिल्म में पहले ही खुद को साबित कर चुके हैं, लगता है शाहिद से आगे जाएंगे. डायरेक्टर की ये भी खामी रही कि उसने बाकी किरदारों को मौका ही नहीं दिया ज्यादा उभरने का, आशुतोष राणा का किरदार सशक्त था, लेकिन हिस्से में सीन कम आए. पूरी फिल्म ईशान और जाह्नवी पर ही फोकस करी गई, चूंकि सैराट और एक खास सामाजिक संदेश पर भी फोकस करना था, सो एक जबरदस्त फिल्म बनते बनते रह गई.

खासकर जिन लोगों ने सैराट देख ली है, उनको ये फिल्म कम ही पसंद आएगी. जाह्नवी, श्रीदेवी और ईशान के फैंस के लिए बनी फिल्म है. आप फिल्म नहीं भी देखेंगे तो चलेगा, ये हो सकता है कि जाह्नवी और करण जौहर के नाम की वजह से फिल्म अपना पैसा निकाल ले, लेकिन अगर सैराट की तरह 100 करोड़ क्लब में भी शामिल नहीं हुई तो उंगलियां सीधे करण जौहर पर उठेंगी.

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