नई दिल्ली: सिंधु जल समझौते को लेकर एक साथ मध्यस्थ कोर्ट बनाने और स्वतंत्र विशेषज्ञ नियुक्त करने के विश्व बैंक के फैसले पर भारत ने विश्व बैंक से आपत्ति जताई है और इसकी कड़ी आलेचना की है. बता दें कि किशनगांगा और रतले पनबिजली संयंत्रों को लेकर पाकिस्तान की शिकायत पर विश्व बैंक ने मध्यस्थ कोर्ट बनाने और स्वतंत्र विशेषज्ञ नियुक्त करने का फैसला किया है.
भारत ने विश्व बैंक से मांग की थी की वह इसपर स्वतंत्र विशेषज्ञ नियुक्त करे और पाकिस्तान ने विश्वबैंक से मांग की थी कि वह इसपर मध्यस्थ कोर्ट बनाए. विश्वबैंक ने दोनों की बातें मान ली हैं. भारत का कहना है कि यह मामला स्वतंत्र विशेषज्ञ के दायरे में आता है. भारत विश्व बैंक के इस रुख से काफी गुस्से में है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरुप ने कहा है कि एक साथ दोनो प्रक्रियाएं ठीक नहीं हैं. ये कानूनी और व्यवहारिक नहीं हैं और उन्होनें इसे अस्वीकार कर दिया है. उन्होंने कहा विश्व बैंक का यह फैसला आश्चर्यजनक है और यह फैसला सिंधु जल समझौते के प्रावधानों के अनुरुप नहीं है, भारत इस तरह की किसी भी व्यवस्था का हिस्सेदार नहीं बनेगा. उन्होंने आगे कहा कि सरकार इसके दूसरे पहलुओं पर विचार कर रही है.
बता दें कि यह समझौता जल बंटवारे को लेकर 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था. इससे जुड़े विवादों को सुलझाने में विश्व बैंक की भूमिका है. इसी विवाद को लेकर दोनों देश विश्व बैंक के पास पहुंचे हैं.