2011 में चीन के द्वारा अपने अंतरिक्ष स्टेशन तियानगॉन्ग 1 को अंतरिक्ष में स्थापित करना एशियाई देश के लिहाज से एक बड़ी उपलब्धि थी लेकिन आज यही एक समस्या बनती दिखाई दे रही है.
नई दिल्ली. 2011 में चीन के द्वारा अपने अंतरिक्ष स्टेशन तियानगॉन्ग 1 को अंतरिक्ष में स्थापित करना एशियाई देश के लिहाज से एक बड़ी उपलब्धि थी लेकिन आज यही एक समस्या बनती दिखाई दे रही है.
दरअसल तियानगॉन्ग 1 ने अपनी निर्धारित समयावधि पूरी कर ली है लेकिन अब यह स्टेशन चीनी अंतरिक्ष एजेंसी के काबू में नहीं है. इस बारे में चीनी एजेंसी सीएमएसई की डिप्टी डायरेक्टर वू पिंगने जानकारी दी है कि यह अगले साल के आखिरी महीनों में धरती पर गिरेगा.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इससे किसे और कितना नुक्सान होगा. चीनी एजेंसी सीएमएसई की माने तो इस स्पेस स्टेशन के गिरने से किसी को नुक्सान होने की आशंका बेहद कम है. यह भी बता दें कि तियानगान्ग 2 सितंबर में ही अंतरिक्ष में स्थापित हो चुका है.
जानकारों का कहना है कि बेशक इस स्पेस स्टेशन का अधिकतर हिस्सा वायुमंडल में प्रवेश करते ही जल जाएगा और इससे नुक्सान की गुंजाइश कम से कम हो जाती है लेकिन कुछ प्रतिशत यह गुंजाइश फिर भी बनी रहती है कि इसके गिरने से जान माल का नुक्सान हो सकता है.
इसके पीछे मत यह है कि स्पेस स्टेशन में ऐसा कई सामान होता है जो आग नहीं पकड़ता ऐसे में मलबे के गिरने की गुंजाइश बनी रहती है.
पहले भी हुई है ऐसी घटना, भारत के सर बन गया था खतरा
इस से पहले भी स्कायलैब की अपनी कक्षा से निकलकर पृथ्वी पर गिरने की घटना इतिहास में घट चुकी है. वह एक नौ मंजिला ऊंचा और 78 टन वजनी ढांचा था. इसे अमेरिका ने 1973 में अंतरिक्ष में छोड़ा था. इसके पृथ्वी पर गिरने के वक्त आशंका यह भी जताई गई थी कि इसका मलबा भारत पर गिर सकता है.
इसके बाद जैसे-जैसे मलबे के गिरने की तारीख पास आती गयी वैसे-वैसे भारत दहशत का माहौल बन गया था. हालांकि इसके टुकड़े हिन्द महासागर और कुछ ऑस्ट्रेलिया में गिरे लेकिन कैसी भी जान माल की हानि नहीं हुई.
इसके बाद से विज्ञान खासकर के अमेरिका काफी तरक्की कर चुका है लेकिन वह आज भी नहीं जानते कि किसी स्पेस स्टेशन से संपर्क टूट जाने पर वह कब और कहां गिरेगा.