मुंबई. विवादास्पद इस्लामिक धर्मगुरू जाकिर नाईक का एनजीओ आईआरएफ एजुकेशनल ट्रस्ट को सरकार ने पूर्व अनुमति श्रेणी में डाल दिया है. इसके चलते अब यह बिना केंद्र की अनुमति के विदेशी चंदा हासिल नहीं कर पाएगा. जाकिर के ट्रस्ट का नाम इस्लामिक रिसर्च फाउंटेशन है.
खुफिया एजेंसियों को मिली थी जानकारी
गृह मंत्रालय ने एक गजट अधिसूचना में कहा कि खुफिया एजेंसियों और रिकॉर्ड्स से मिली जानकारी के अनुसार यह पाया गया कि नाईक के आईआरएफ एजुकेशनल ट्रस्ट ने विदेशी योगदान नियमन कानून (FCRA) 2010 के विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए पाया गया है.
चंदा लेने पहले केंद्र से लेनी होगी अनुमति
अधिसूचना में ये भी कहा गया है कि परिणामस्वरूप अब केन्द्र सरकार एफसीआरए 2010 की धारा (11) उपधारा तीन में निहित अधिकारों का प्रयोग करते हुए यह साफ करती है कि ट्रस्ट कानून की धारा (12) तथा इनके नियमों के तहत किसी भी तरह का विदेशी चंदा लेने से पहले केंद्र से हर बार अनुमति लेनी होगी.
सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि कुछ जांच में यह सामने आया है कि नाईक संस्थओं में आने वाले पैसे का उपयोग युवाओं में कट्टरपंथी की भावना भरने के लिए और उन्हें आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाने में करता था.
क्या था मामला ?
बता दें कि जुलाई में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुए आतंकी हमले के बाद यह खबर आई थी कि हमले में शामिल कुछ आतंकी जाकिर नाईक के उपदेशों से प्रभावित थे. जाकिर पर भड़काऊ भाषण देने के भी कई मामले दर्ज हैं. गिरफ्तारी के डर से ही जाकिर अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए भारत नहीं आया, वह इस समय मलेशिया में है.
कौन हैं जाकिर नाईक
जाकिर का जन्म 1965 में मुंबई में हुआ. मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद जाकिर ने 1991 में इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की. इस संस्था का मकसद था गैर मुस्लिमों को इस्लाम का सही मतलब समझाना. इसी मकसद से जाकिर ने खुद दुनिया भर में घूम घूम कर कुरान और इस्लाम पर लेक्चर देना शुरू कर दिया. जाकिर नाइक पिछले 20 सालों में 30 से ज्यादा देशों में 2000 से भी ज्यादा सभाएं कर चुका है. जाकिर की वेशभूषा और भाषा दूसरे इस्लामिक धर्मगुरुओं से बिलकुल अलग है.