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कॉमन सिविल कोड: विरोध में उतरे कई संगठन, कहा- खतरे में पड़ जाएगी राष्ट्रीय एकता

नई दिल्ली.  लॉ कमीशन की ओर से ट्रिपल तलाक और कॉमन सिविल कोड पर जनता से पूछी जा रही राय के मामले में अब राजनीति तेज होती जा रही है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बाद अब पिछड़े समुदाय, लिंगायत, बौद्ध और मुस्लिम संगठन की ओर इसके विरोध में संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस की गई है. […]

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  • October 20, 2016 10:12 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली.  लॉ कमीशन की ओर से ट्रिपल तलाक और कॉमन सिविल कोड पर जनता से पूछी जा रही राय के मामले में अब राजनीति तेज होती जा रही है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बाद अब पिछड़े समुदाय, लिंगायत, बौद्ध और मुस्लिम संगठन की ओर इसके विरोध में संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस की गई है.
 
मुस्लिम संगठन की ओर से तौकीर रजा खान ने आरोप लगाया कि सारी कवायद अब यूपी चुनाव के मद्देनजर की जा रही है. उन्होंने कहा कि सबके लिए एक कानून से अफरातरफी का माहौल बन जाएगा.

वहीं उन्हीं के साथ राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद के अध्यक्ष प्रेम कुमार गेडाम ने कहा कि उनकी ओर से एक हलफनामा दाखिल किया गया है. उनके मुताबिक कॉमन सिविल कोड से राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ जाएगी. इसका असर अदिवासी समुदाय में सबसे ज्यादा पड़ेगा. आदिवासी हिंदू नही हैं. हमारी परंपराओं और मान्यताओं को खतरा पहुंचेगा. हमारा मुल्क आदिवासियों की पहचान है. 
 

बुद्धिस्ट इंटरनेशनल सेंटर यूनिफॉर्म के बाबा हस्ते ने कहा कि सिविल कोड हमारे ऊपर जबरदस्ती न थोपा जाए. नोमेडिक ट्राइब समुदाय ने अनिल कुमार का मानना है कि सबकी संस्कृति अलग-अलग है. भाषा अलग है. यूनिफॉर्म सिविल कोड नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि किसी चीज को जबरन थोपना मतलब बलात्कार होता है. 
 
वहीं पिछड़े समुदाय के नेता कुमार काले ने कहा कि कॉमन सिविल कोड मौलिक अधिकार का हनन है. उत्तर प्रदेश में चुनाव है इसलिए ऐसी बातें की जा रही हैं. ये मामला पूरे देश से जुड़ा है. हम जनता की अदालत जाएंगे.
 
गौरतलब है कि कॉमन सिविल कोड को लेकर पूरे देश में काफी दिनों से बहस हो रही है. इसके पहले भी केंद्र सरकारों ने इस मुद्दे पर अलग-बहस कर चुकी हैं. अब देखने वाली बात यह है कि केंद्र में मौजूदा मोदी सरकार इस मामले को कहां तक खींच पाती है.
 
 

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