नई दिल्ली. चुनावी माहौल में राजनीतिक दलों की परेशानी बढ़ सकती है. धर्म, जाति और भाषा के नाम पर होने वाली राजनीति को झटका लग सकता है. सुप्रमी कोर्ट ने हिंदुत्व की व्यापक व्याख्या और धर्म के नाम पर वोट मांगने के मामले पर सुनवाई शुरू कर दी है.
सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस मसले पर सुनवाई कर रही है. सुप्रीम कोर्ट के हिंदुत्व के फैसले पर एक बार फिर विचार किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में तीन न्यायाधीशों ने कहा था कि हिंदुत्व शब्द धर्म का नहीं बल्कि संस्कृति और जीवनशैली का प्रतीक है.
सुप्रीम कोर्ट इस पर भी विचार करेगा कि अपने धर्म के अलावा दूसरे के धर्म के नाम पर भी वोट मांगना क्या भ्रष्ट माना जाएगा. इस पर भी विचार होगा कि धर्म, जाति, समुदाय और भाषा के आधार पर वोट मांगना कैसे और किस हद तक चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना जाएगा. अगर ये फैसला जल्द आ जाता है तो इसका देश की राजनीति पर काफी प्रभाव पड़ेगा.
कोर्ट की अलग-अलग व्याख्याएं
ये मामला पिछले 20 सालों से सुप्रीमकोर्ट में लंबित है. बंबई हाई कोर्ट ने वर्ष 1991-92 में चुनावी भाषणों में हिंदुत्व शब्द के इस्तेमाल और हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने को चुनाव में भ्रष्ट तरीका माना था. इसके चलते शिवसेना और भाजपा के बड़े नेताओं सहित 10 लोगों का चुनाव रद्द हो गया था. लेकिन, फिर सुप्रीमकोर्ट ने यह फैसला पलट दिया था. इस मसले पर हाई कोर्ट और सुप्रमी कोर्ट की अलग-अलग व्याख्याओं के चलते यह मामला सात न्यायाधीशों को भेजा गया है.
मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की पीठ ने मंगलवार से इस पर सुनवाई शुरू कर दी है. कोर्ट के समक्ष जन्प्रतिनिधित्व काूनन की धारा 123(3) की व्याख्या का मसला है. इस धारा के तहत अगर कोई व्यक्ति चुनाव के दौरान धर्म, जाति, समुदाय और भाषा के नाम पर लोगों की भावनाएं भड़काना भ्रष्ट तरीका माना जाएगा. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कई सवाल पूछे. पीठ ने कहा कि धर्म के आधार पर वोट मांगना कानून के अनुसार भ्रष्ट तरीका है लेकिन क्या दूसरे के धर्म के आधार पर वोट मांगना भी भ्रष्ट तरीका माना जाएगा.