दलितों पर अत्याचार के मामले में यूपी नं वन, पिछले साल दर्ज हुए 8,358 मामले

देश भर में दलितों पर अत्याचार कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. इन आंकड़ों में दिन प्रति दिन बढोत्तरी देखी जा रही है. ये हम नहीं कह रहे है, ये बता रहे हैं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ें. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के बीते साल के आंकड़ें बड़े चौंकाने वाले हैं.

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दलितों पर अत्याचार के मामले में यूपी नं वन, पिछले साल दर्ज हुए 8,358 मामले

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  • October 12, 2016 6:55 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली. देश भर में दलितों पर अत्याचार कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. इन आंकड़ों में दिन प्रति दिन बढोत्तरी देखी जा रही है. ये हम नहीं कह रहे है, ये बता रहे हैं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ें. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के बीते साल के आंकड़ें बड़े चौंकाने वाले हैं. रिपोर्ट्स के अनुसार देश भर में दलितों पर अपराध के मामले में सबसे अव्वल नंबर पर उत्तर प्रदेश है. पिछेल साल 2015 में सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए हैं. 
 
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2015 में दर्ज हुए 8,358 मामले
एनसीआरबी के अनुसार साल 2015 में उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ अत्याचार के सबसे अधिक 8,358 मामले दर्ज किए गए. यह आंकड़ा यूपी में वर्ष 2014 में हुए ऐसे अपराधों से 3.50 फीसदी अधिक है. बता दें 2014 में प्रदेश में ऐसे 8,075 मामले दर्ज किए गए थे.  
 
राष्ट्रीय आंकड़ों में गिरावट
आंकड़ों के मुताबिक दलितों के खिलाफ अपराध के राष्ट्रीय आंकड़े में 4.51 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. 2015 में 45,003 मामले दर्ज हुए, जबकि साल 2014 में देशभर में ऐसे 47,064 मामले दर्ज किए गए थे. 
 
6,438 मामलों के साथ दूसरे नंबर पर राजस्थान
उत्तर प्रदेश के अलावा, राजस्थान में अनुसूचित जाति के लोगों के साथ अपराध के 6,998, बिहार में 6,438 और आंध्र प्रदेश में 4,415 मामले दर्ज किए गए.
 
इन राज्यों में दर्ज नहीं हुआ कोई मामला
पूर्वोत्तर के पांच राज्यों मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में वर्ष 2015 में ऐसे एक भी मामले दर्ज नहीं किए गए. केंद्र शासित प्रदेशों अंडमान और निकोबार द्वीप, दादर और नगर हवेली तथा लक्षद्वीप में भी दलितों के खिलाफ अपराध के एक भी मामले सामने नहीं आए. गोवा, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, केरल, असम, पंजाब और हरियाणा में भी ऐसे मामलों की संख्या काफी कम रही.
 
 

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