नई दिल्ली. ट्रिपल तलाक़ मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम वीमेन पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर ट्रिपल तलाक़ का विरोध किया है. अर्जी में कहा धर्म मानने का अधिकार धर्म के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता. ट्रिपल तलाक़ एक बार में बोलना शरीयत और इस्लाम के ख़िलाफ़ है. संविधान के आर्टिकल 25 धर्म की आजादी का अधिकार देता है लेकिन अगर वो लिंग के आधार पर हो तो कोई मनाये नहीं रह जाते और वो लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देता है.
अपनी अर्जी में ऑल इंडिया मुस्लिम वीमेन पर्सनल लॉ बोर्ड ने लिखा है कि इस प्रथा से मुस्लिम महिलाओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है और हमारी संस्था मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रही है. ये न्याय के हक़ में है कि हमें पक्ष बनने का अवसर दिया जाये. एक धर्म निरपेक्ष समाज के हित में हमारी ये याचिका है। तलाक़ के इस मौजूदा सिस्टम से मौलिक अधिकारों का हनन होता है. क़ुरान में दिए हिदायतों को भारत के संविधान में कानूनी से जोड़ा जाए और लागू किया जा जाये.
बता दें कि केंद्र सरकार ने पहली बार मुस्लिमों में सदियों से जारी ट्रिपल तलाक का विरोध किया है. ट्रिपल तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर विरोध जताया. केंद्र सरकार का तलाक की इस परंपरा के बारे में कहना है कि ये महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है. अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि तलाक-तलाक-तलाक महिलाओं के साथ लैंगिग भेदभाव पैदा करता है. साथ ही सरकार का कहना है कि लैगिंक समानता और महिलाओं की गरिमा से समझौता नहीं किया जा सकता है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में शायरा बानो को द्वारा ट्रिपल तलाक की परंपरा के खिलाफ याचिका दाखिल की गई है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से इस मसले पर उनका जवाब मांगा था. इसी मामले में सुनवाई के दौरान कानून एवं न्याय मंत्रालय ने अपने हलफनामे में लैंगिक समानता, धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक व्यवहारों और विभिन्न इस्लामी देशों में वैवाहिक कानून का जिक्र किया. सरकार का कहना है कि तलाक-तलाक-तलाक को धर्म के जरुरी हिस्से के तौर पर नहीं लिया जा सकता है. संविधान देश के सभी नागरिकों को एक समान अधिकार प्रदान करता है. इसलिए ट्रिपल तलाक पर गहन विचार की जरुरत है.