Ganga saptami 2018 :बैसाख मास के शुक्ल पक्ष की गंगा सप्तमी को गंगा जयंती के तौर पर भी जाना जाता है. गंगा जयंती पुण्यदायिनी गंगा माता की उत्पत्ति का पवन दिवस है. इस दिन माता गंगा स्वर्ग से उतार कर शिव जी की जटाओं में पहुंची थीं. इस दिन गंगा में स्नान का भी बहुत महत्व है
नई दिल्ली. बैसाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है. सनातन शर्म में इसकी बहुत मान्यता है क्योंकि यह माना जाता है की इस दिन माता गंगा स्वर्ग से उतार कर शिव जी की जटाओं में पहुंची थीं. इस दिन गंगा में स्नान का भी बहुत महत्व है.
भक्त जन माता गंगा की प्रातः काल से ही आरती इत्यादि करते हैं एवं पूरे दिन उनके सम्मान में भजन कीर्तन होता है. गंगा में डुबकी लगने से भी, कई जन्मों के किए गए पापों से मुक्ति मिलती है. इस दिन पितरों का स्मरण कर तर्पण किया जाता है. माना जाता है जो इस दिन माता गंगा में डुबकी लगाकर पितरों का टरपन करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन मां के कल्याणकारी रूप का स्मरण कर दान पुण्य अवश्य करना चाहिए. संध्या में आरती कर माता गंगा में दीपक भी जलाए जाते हैं.
गंगा सप्तमी का पौराणिक महत्व
एक समय कपिल मुनि ने अपने श्राप से राजा सगर के 80 हजार पुत्रों को जलाकर भस्म कर दिया था सूर्यवंशी राजा सगर के वंशज महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों का उद्धार करने के लिए मां गंगा की घोर तपस्या की. माता गंगा ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया की वह धरती पर अवश्य उतरेंगी. जब वह धरती पर उतरने लगी तो उनके वेग से चारों तरफ़ तहस नहस की स्थितियां बन गयीं. हाहाकार मच गया, सभी देवी देवता भी सोचने लगे की अब इस वेग तो कैसे कम किया जाए. तब भगवान शिव का सबने आवहन किया एवं उनसे मदद मांगी.
भोलेनाथ ने माता गंगा के वेग को रोकने के लिए उन्हें पहले अपनी जटाओं से बांधा. उसके पश्चात, भगवान शिव ने अपनी एक जटा को खोल कर माता गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया. म गंगा का वेग अभी भी बहुत तेज़ था एवं उनके इस तेज धारा से महर्षि जाहनू का आश्रम नष्ट हो गया एवं उनकी तपस्या भंग हो गयी. जब ऋषि ने ऐसा होते देखा तो क्रोध में आकर उन्होंने समस्त गंगा को पी लिए.
महाराज भगीरथ की विनती पर उन्होंने अपने एक कान से बैसाख मास की सप्तमी तिथि को माता गंगा को बाहर निकाला. इसीलिए इस दिन को जाहनू सप्तमी के रूप में भी मनाया जाता है एवं माता गंगा को भी इसीलिए जहानवी ( ऋषि जाहनू की पुत्री) भी कहा जाता है.
महाराज भगीरथ के अनुरोध पर माता गंगा ने स्वयं उस स्थान पर प्रवेश किया जहां महाराज भगीरथ के समस्त परिवार को भस्म किया गया था. एवं उनके स्पर्श एवं आशीर्वाद से सभी को मोक्ष की प्राप्ति हुई. माता गंगा को इसीलिए मोक्ष दायिनी भी कहा जाता है.
जिस दिन माता गंगा शिव जी की जटाओं में पहुंची उसे गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है एवं जिस दिन वह पृथ्वी पर अवतरित हुईं उस दिन को गंगा सप्तमी के नाम से जाना जाता है. गंगा दशहरा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है.
इन दोनो ही दिन भक्त जन माता गंगा की खूब जोर शोर से पूजा करते हैं एवं गंगा मैय्या के तट पर पूजा होती है एवं उनके सम्मान में विभिन्न आयोजन किए जाते हैं.
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