नई दिल्ली. अपनी किताब ‘1991 : हाऊ पीवी नरसिंम्हा राव मेड हिस्ट्री’ के बारे में मीडिया से बातचीत में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाइजर रहे संजय बारू ने 1991 में आए देश के बड़े आर्थिक संकट का आशिंक रूप से जिम्मेदार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी ठहराया है.
उनका कहना है कि जिस समय देश भारी उधारी के संकट से जूझ रहा था उसी समय कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस ले लिया. जिसका नतीजा यह रहा कि देश बड़े आर्थिक संकट में फंस गया.
संजय बारू ने कहा कि 1985 के बाद से जो आर्थिक नीति अपनाई गई वह भी ठीक नहीं थी. राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी लोन लिए जिसकी वजह बैलेंस ऑफ पेमेंट की हालत खराब हो गई और देश की वित्तीय घाटा भी बढ़ गया.
राजीव गांधी की आर्थिक नीति का उस समय कई अर्थशास्त्रियों ने विरोध भी किया था. उसके बाद यह संकट और गहरा गया जब एक साल के अंदर ही वीपी सिंह की सरकार भी गिर गई.
देश इसी बड़े आर्थिक संकट से जूझ ही रहा था कि चंद्रशेखर को कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बनाया गया. नई सरकार इस आर्थिक संकट से निपटने और संसद में बजट पेश करने की तैयारी कर ही रही थी कि ऐन मौके पर राजीव गांधी ने एक बार फिर से समर्थन वापस ले लिया.
बारू ने कहा कि कांग्रेस इस फैसले से आर्थिक हालत बिगड़ गई और हालत यह हो गई कि देश कंगाली की हालत पर आकर खड़ा हो गया.
संजय बारू ने बताया कि देश पर छाई इस मंदी से हालत बहुत ही खराब हो गई थी. हमारा विदेशी मुद्रा भंडार बेहद कम हो गया था. भुगतान का संकट गहरा गया था. भारत दिवालिया होने की कगार पर खड़ा था और अगर ऐसा हो जाता तो हमारी हालत अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों की तरह हो गई होती.
नरसिम्हा राव की तारीफ
बारू ने कहा कि 1991 में प्रधानमंत्री पद का संभालने के बाद पीवी नरसिंम्हा राव ने देश की तस्वीर बदल दी. उन्होंने सरकार बनने के एक महीने के भीतर ही देश का सबसे बड़ा और गेम चेंजर बजट पेश किया जिसमें देश की आद्यौगिक नीति में बड़ा सुधार था.
कांग्रेस पर आरोप
बारू ने आरोप लगाया कि राव की पार्टी कांग्रेस ने बाद में उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. उनको भारत रत्न देने से मना कर दिया. यहां तक की उनकी शव को पार्टी के मुख्यालय में नही रखने दिया गया और दिल्ली में उनके अंतिम संस्कार को जगह नहीं दी गई.