नई दिल्ली. शहीद-ए आज़म भगत सिंह का जन्म आज ही के दिन पंजाब प्रान्त के लायलपुर गांव (अब पाकिस्तान) में हुआ था. हालांकि कुछ लोगों का ये भी मानना है की उनका जन्म 27 सितम्बर 1907 को हुआ था.
13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उनके जीवन पर गहरा असर डाला और वह आज़ादी की लड़ाई से जुड़ गए. 1922 में जब गाँधी जी ने चौरी-चौरा हत्याकांड के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तो उनका कांग्रेस और गाँधी की अहिंसावादी विचारधारा से मोह भंग हो गया. उन्होंने 1923 में लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया, इस दौरान उन्होंने यूरोप और रूस में हुई क्रांतियों का अध्यनन किया.
भगत सिंह ने 1926 में भारत नौजवान सभा कि स्थापना की बाद में वह चन्द्रशेखर आज़ाद की पार्टी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े. भगत सिंह मानते थे कि धर्म आज़ादी की लड़ाई में एक बाधा हैं. उन्होंने 1930 में लाहौर सेंट्रल से अपना सुप्रसिद्ध निबंध “मैं नास्तिक क्यों हूँ” (व्हाई एम एन एथीस्ट) लिखा.
उनकी फांसी की तारीख 24 मार्च 1931 तय की गयी थी पर उनकी रिहाई के लिए हो रहे आंदोलन से डरकर अंग्रेजों ने उन्हें एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर तख्त पर चढ़ा दिया. कहा जाता है कि जब उनको फांसी दी गई तब वहां कोई मजिस्ट्रेट मौजूद नहीं था, जो की नियमों के खिलाफ था.