साउथ कोरिया की एक यूनिवर्सिटी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से लैस ऐसे रोबोट बना रही है, जिन्हें 'किलर रोबोट' नाम दिया गया है. कोरिया एडवांस इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (केएआईएसटी) इन खतरनाक रोबोट्स को हथियार निर्माता कंपनी 'हानव्हा सिस्टम्स' के साथ मिलकर तैयार कर रही है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक्सपर्ट्स ने अब यूनिवर्सिटी का बॉयकॉट करने का फैसला किया है.
नई दिल्लीः 21वीं सदी में टेक्नोलॉजी एक अलग दिशा में आगे बढ़ रही है. भलाई और बुराई दोनों ही पहलुओं पर इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी सदी में एक वक्त ऐसा आने वाला है जब इंसानों का काम रोबोट करेंगे. रोबोट दुनिया को चलाएंगे. कुछ इसी तर्ज पर साउथ कोरिया की एक यूनिवर्सिटी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से लैस ऐसे रोबोट बना रही है, जिन्हें ‘किलर रोबोट’ नाम दिया गया है. यूनिवर्सिटी द्वारा ‘किलर रोबोट’ बनाए जाने पर दुनियाभर के एआई एक्सपर्ट्स ने अब यूनिवर्सिटी का बॉयकॉट करने का फैसला किया है.
कोरिया एडवांस इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (केएआईएसटी) इन खतरनाक रोबोट्स को बना रही है. 30 देशों में 50 से भी ज्यादा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिसचर्स ने यूनिवर्सिटी का बॉयकॉट करने के लिए ओपेन लेटर साइन किया है. चिट्ठी में लिखा है कि ये रोबोट्स आने वाले वक्त में इंसानों के लिए खतरा बन सकते हैं. जंग में इनकी मदद से दुनिया विनाश की ओर आगे बढ़ेगी. आतंकियों के हाथों में अगर यह रोबोट्स लग जाते हैं तो भी यह इंसानियत के लिए खतरा बन जाएंगे.
रिसचर्स ने कहा है कि जब तक यूनिवर्सिटी उन्हें यह भरोसा नहीं दिलाती कि यह रोबोट मानवों के लिए खतरा नहीं बनेंगे और इनका इस्तेमाल पूरी तरह से अच्छाई के लिए किया जाएगा, तब तक वह बॉयकॉट जारी रखेंगे. उन्होंने संस्थान और उसकी रोबोट आर्मी को लेकर चिंता जाहिर की है. हाल में स्पेसएक्स के अध्यक्ष एलन मस्क ने इन किलर रोबोट को ‘अमर तानाशाह’ की संज्ञा दी थी. बता दें कि यूनिवर्सिटी ने एक हथियार निर्माता कंपनी के साथ रोबोट निर्माण को लेकर करार किया है.
केएआईएसटी ने ‘हानव्हा सिस्टम्स’ नामक हथियार निर्माता कंपनी के साथ साझा अध्ययन केंद्र खोलने की भी घोषणा की है. हानव्हा सिस्टम्स रोबोटिक संतरी का निर्माण कर चुका है. यह रोबोट दक्षिण और उत्तर कोरिया के बॉर्डर पर पेट्रोलिंग करता है. ‘हानव्हा सिस्टम्स’ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस ऐसी तकनीक विकसित करना चाहती है, जिसका इस्तेमाल सेना के हथियारों में किया जा सके ताकि वह बिना इंसानी नियंत्रण के जंग में लड़ सकें.
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