उम्मीदों की रोशनीः बिजली की मंडी में सरकारी बाबू क्यों हैं?

सरकार ने बिजली उद्योग में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए पावर ट्रेडिंग और पावर एक्सचेंज शुरू किया, लेकिन आज भी बिजली की मंडी में सरकारी बाबुओं का दबदबा है. यहां तक कि 1999 में पीपीपी मॉडल के तहत शुरू किए गए पावर ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन पर आज भी ऊर्जा मंत्रालय के अफसरों का नियंत्रण है, जिससे बिजली उद्योग नाखुश है.

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उम्मीदों की रोशनीः बिजली की मंडी में सरकारी बाबू क्यों हैं?

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  • September 16, 2016 1:56 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली. सरकार ने बिजली उद्योग में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए पावर ट्रेडिंग और पावर एक्सचेंज शुरू किया, लेकिन आज भी बिजली की मंडी में सरकारी बाबुओं का दबदबा है. यहां तक कि 1999 में पीपीपी मॉडल के तहत शुरू किए गए पावर ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन पर आज भी ऊर्जा मंत्रालय के अफसरों का नियंत्रण है, जिससे बिजली उद्योग नाखुश है.
 
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इंडिया न्यूज़-IPPAI की पड़ताल
देश में बिजली की दशा और दिशा की पड़ताल करने के लिए इंडिया न्यूज़ ने इंडिपेंडेंस पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IPPAI) के साथ ‘उम्मीदों की रोशनी’ के नाम से सीरीज़ शुरू की है. IPPAI देश में ऊर्जा क्षेत्र की पहली थिंकटैंक है, जो 1994 से भारत में ऊर्जा क्षेत्र की सच्चाई पर खुली बहस के लिए निष्पक्ष मंच के रूप में काम कर रही है.
 
पीटीसी सरकारी कंपनी या प्राइवेट?
पावर ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन यानी पीटीसी की गवर्निंग बॉडी का ढांचा इतना उलझा हुआ है, जिससे ये पता ही नहीं चलता कि ये सरकारी कंपनी है या प्राइवेट? इसके बोर्ड में थर्मल पावर, हाइड्रो पावर जैसी सरकारी कंपनियों के प्रतिनिधि हैं, क्योंकि पीटीसी की शुरुआत इन्हीं कंपनियों की पूंजी से हुई थी. लेकिन, पीटीसी के बोर्ड में ऊर्जा मंत्रालय के ज्वाइंट सेक्रेटरी क्यों हैं, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. पीटीसी के पूर्व चेयरमैन टीएन ठाकुर का कहना है कि पीटीसी प्राइवेट कंपनी है. चूंकि इसकी नियमावली में बदलाव नहीं किया गया, इसलिए ऊर्जा मंत्रालय के नौकरशाह इसके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में बने हुए हैं..
 
एनर्जी एक्सचेंज में पीटीसी का खेल !
पीटीसी को पावर ट्रेडिंग यानी बिजली के खरीद-फरोख्त करने की जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि बिजली की मंडी की बड़ी खिलाड़ी पीटीसी ने एनर्जी एक्सचेंज शुरू होते ही जिग्नेश शाह की इंडियन एनर्जी एक्सचेंज में 26 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली. जिग्नेश शाह अब घोटालों में घिरे हैं और इंडियन एनर्जी एक्सचेंज की बिजली की मंडी में मोनोपोली है. अब सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या पीटीसी ने इंडियन एनर्जी एक्सचेंज में 26 फीसदी हिस्सेदारी खरीदकर मोनोपोली को बढ़ावा तो नहीं दिया?
 
जनता के पैसे से दूसरों का कारोबार बढ़ाने लगी पीटीसी !
पीटीसी ने जिस वक्त इंडियन एनर्जी एक्सचेंज में 26 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी, तब तक पीटीसी ने खुद को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट करा लिया था और 2004 में ही पीटीसी का पब्लिक इश्यू आ चुका था. पीटीसी के शेयर बेचकर पूंजी इसलिए जुटाई गई थी, ताकि पीटीसी बिजली की खरीद-फरोख्त के अपने कारोबार का विस्तार कर सके. फिर पीटीसी ने जनता का पैसा इंडियन एनर्जी एक्सचेंज में क्यों लगा दिया, इसका साफ-साफ जवाब किसी के पास नहीं है.
 
पावर ट्रेडिंग और एनर्जी एक्सचेंज में कोई खेल तो नहीं चल रहा?
इंडियन एनर्जी एक्सचेंज और पीटीसी के कारोबारी रिश्ते उजागर होने के बाद अब ये सवाल भी खड़ा हो गया है कि कहीं दोनों के बीच कोई खेल तो नहीं चल रहा था? क्यों पीटीसी ने सिर्फ इंडियन एनर्जी एक्सचेंज में पूंजी निवेश किया? इंडियन एनर्जी एक्सचेंज के क्रिया-कलापों की जांच की मांग ऊर्जा मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति ने भी की है.

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