लखनऊ. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में मची कलह के पीछे सासंद अमर सिंह का हाथ होने की बात कही जा रही है. कई कुनबे में फूट डालने वाले सांसद के नाम से मशहूर अमर सिंह का सीधे-सीधे नाम तो नहीं लिया जा रहा है लेकिन अखिलेश ने बुधवार को बातों ही बातों में अमर सिंह की तरफ इशारा किया था. अमर सिंह के बारे में बताया जाता है कि वो कई कुनबे में कलह डालने में माहिर हैं. अमिताभ बच्चन से लेकर अंबानी परिवार इसका उदाहरण है.
बुधवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि पार्टी में मौजूदा संकट के लिए परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति जिम्मेदार है. बता दें कि चाचा शिवपाल के साथ भतीजे अखिलेश के विवाद ने काफी बड़ा रूप ले लिया है. मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव ने गुरुवार देर रात को अखिलेश सरकार में मंत्री पद के साथ-साथ पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के पद से भी इस्तीफा दे दिया है.
अमर की वापसी के खिलाफ थे अखिलेश
अखिलेश पार्टी में अमर सिंह की वापसी को लेकर कभी खुश नहीं थे. अमर सिंह की सपा में वापसी तो हो गई, उनके मनचाहे काम नहीं हो पा रहे थे. अखिलेश ने अमर सिंह को कभी हावी नहीं होने दिया. इसका दर्द कभी कभी राज्यसभा पद से इस्तीफे की धमकी तो कभी पार्टी छोड़ने की चेतावनी के रूप में बार-बार दिख रहा था. अमर सिंह मुलायम सिंह के काफी करीबी रहे हैं लेकिन शिवपाल से करीबी की वजह से छह साल बाद पार्टी में उनकी वापसी का रास्ता साफ हुआ था और राज्यसभा भी भेजे गए. अखिलेश की तरह रामगोपाल भी अमर सिंह की वापसी के खिलाफ थे. इसलिए इस मामले में गुरूवार को पहली बार मीडिया के सामने आए रामगोपाल के निशाने पर अमर सिंह ही रहे.
अंबानी कुनबे में डाली कलह
अमर सिंह खुद को धीरूभाई अंबानी का सबसे बड़ा दोस्त बताते थे, उनकी मौत के बाद अंबानी बंधुओं की आपसी रार में भी अमर सिंह शामिल रहे. पेट्रोलियम कारोबार के बंटवारे को लेकर चल रही रस्साकसी के दौरे में अमर सिंह मध्यस्थ की भूमिका में थे. वजह थी तत्कालीन केंद्र सरकार में पेट्रोलियम सचिव से बेहतर रिश्ते होना था. बाद में बवाल बढ़ने लगा तो सबसे पहले अमर सिंह अनिल अंबानी के पाले में खड़े हुए. अनिल अंबानी की मुलायम सिंह के साथ बैठक भी अमर ने कराई और समाजवादियों को बॉलिवुड के बाद कॉरपोरेट से भी जोड़ना इन्हीं का काम था. मुलायम सरकार में अनिल अंबानी ने दादरी और रोजा में पॉवर प्लांट की डील भी की. बाद में अनिल और मुकेश अंबानी ने अपने मतभेदों को कम कर कारोबार में समझौते की ओर कदम बढ़ाया तो सबसे पहले अमर सिंह पतली गली से निकल गए.
अमिताभ और अमर सिंह की बीच बढ़ी दूरियां
जब अमिताभ बच्चन 90 के दशक में अपने करियर के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे थे और उनकी कंपनी एबीसीएल दिवालिया हो चुकी थी तब अमर सिंह अमिताभ की जिंदगी में संजीवनी बनकर आए. इस बात को खुद अमर सिंह कहते हैं कि जब बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों ने अमिताभ की मदद नहीं की थी तब मैनें उन्हें डूबने से बचाया था. मैंने ही सहारा ग्रुप के मालिक सुब्रत राय से अमिताभ की दोस्ती कराई. अमिताभ बच्चन का ग्लैमर सहाराश्री के काम आया और सहाराश्री का फाइनेंस अमिताभ के. इन दोनों के ही कद को कॉरपोरेट डीलर से सियासी लीडर बनने में अमर ने भुनाया. हालांकि जब 2010 में समाजवादी पार्टी से बगावत में जब बच्चन परिवार अमर सिंह के साथ खड़ी नहीं हुई तो ये यारी दुश्मनी में बदल गई. अमर को उम्मीद थी कि उनके साथ जया बच्चन भी समाजवादी पार्टी छोडेंगी लेकिन इसके उलट जया ने अमर को निशाने पर ले लिया. लिहाजा अमिताभ-जया अब अक्सर अमर के निशाने पर रहते हें.