नई दिल्ली. 8 सितम्बर का दिन पाकिस्तान में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत के साथ हुई एक ऐसी जंग में विजय के रूप में जो कभी दोनों तरफ से लड़ी ही नहीं गई, अकेले पाकिस्तान लड़ता रहा. इस जंग का नाम था ऑपरेशन द्वारका. जी हां आज ही के दिन यानी 8 सितम्बर को पाकिस्तान ने श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका पर अचानक हमला बोल दिया था. ये 1965 की बात है, जब भारत पाकिस्तान में जंग चल रही थी.
अप्रैल में शुरू हुई जंग सितम्बर तक आ गई थी और कश्मीर और पंजाब में पाकिस्तान बुरी तरह मात खा रहा था. ऐसे मॆं पाकिस्तान की नौ सेना युद्ध में हिस्सा नहीं ले पा रही थी तो पाकिस्तान के सैन्य जनरलों ने सोचा कि नेवी को काम में लगाकर भारत का ध्यान उत्तरी मोर्चे से हटाया जा सकता है. ऐसे में प्लानिंग हुई ऑपरेशन द्वारका की. द्वारका नगरी वो छोटा सा शहर है जो गुजरात के समुद्र तट पर है और कभी भगवान श्रीकृष्ण यादवों की राजनीति से परेशान होकर मथुरा छोड़कर वहां चले आए थे. उन्होंने वहां राज किया और बाद में सोमनाथ के पास एक बहेलिए का तीर लगने से वो स्वर्ग सिधार गए थे. दीव से लेकर द्रारका तक के समुद्र तटीय रास्ते पर सोमनाथ और पोरबंदर भी आते हैं और धीरू भाई अम्बानी का गांव भी.
द्वारका से महज 200 किलोमीटर दूर है कराची. ऐसे में पाक हुक्मरानों ने ऑपरेशन द्वारका को हरी झंडी दे दी, टारगेट था द्वारका में लगा राडार और लाइट हाउस. इस ऑपरेशन के चलते इंडियन एयरफोर्स को भी कश्मीर और पंजाब से दूर हटाये जाने की उनकी प्लानिंग थी. सात वॉरशिप्स का बेड़ा पाकिस्तान ने इस अटैक के लिए तैयार किया, पीएनएस बाबर, पीनएस खैबर, पीएनएस बद्र, पीएनएस जहांगीर, पीएनएस आलमगीर, पीएनएस शाहजहां और पीएनएस टीपू सुल्तान. जबकि द्वारका में भारत का एक ही वॉरशिप तैनात था आईएनएस तलवार, जो उस वक्त पास ही के एक पोर्ट ओखा में रिपेयरिंग का काम करवा रहा था. जो अगले दिन हालात का जायजा लेने आ पाया था.
सात सितम्बर को रात 11 बजकर 55 मिनट पर वॉरशिप्स से मिसाइलें और बम दागे जाने लगे. बीस मिनट तक यानी रात को 12 बजकर 15 मिनट तक ये जारी रहे. ज्यादातर मिसाइलें या बम मंदिर और रेलवे स्टेशन के बीच की तीन किलोमीटर की समुद्री रेत पर गिरे, बहुत से फटे ही नहीं. ऐसे 40 बमों पर लिखा पाया गया था इंडियन ऑर्डीनेंस. दरअसल वो 1940 में ब्रिटिश राज की हथियार फैक्ट्री में बने थे. नुकसान केवल रेलवे गेस्ट हाउस, एक सीमेंट फैक्ट्री और कुछ इमारतों को पहुंचा. ना राडार का वो लोग कुछ बिगाड़ पाए और ना लाइट हाउस का. लेकिन पाकिस्तानी रेडियो ने प्रसारण भी कर दिया कि द्वारका शहर को बुरी तरह बर्बाद कर दिया गया है. पाकिस्तान में इस ऑपरेशन पर एक फिल्म भी बनाई गई, टाइटल था—ऑपरेशन द्वारका 1965.
लेकिन ये तय है कि इस घटना के बाद भारत में नेवी का सूरत-ए-हाल बदल गया. नेवी का बजट चार गुना कर दिया गया. कच्छ, पोरबंदर और द्वारका में मिसाइल बोट्स की तैनाती कर दी गई. इसके लिए सोवियत संघ की मदद ली गई. बड़े स्तर पर नेवी अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लिया गया. नेवी के मॉर्डनाइजेशन के लिए कमेटी बना दी गई. लेकिन आज भी लोग इस बात पर हैरत करते हैं कि जब एक गोली भारत की तरफ से नहीं चली तो पाकिस्तान के सात सात वॉरशिप्स ना श्रीकृष्ण के मंदिर को कोई नुकसान पहुंचा पाए और ना राडार या लाइट हाउस को, ये वाकई में चमत्कार ही था.